गुरु पूर्णिमा के उत्सव पर डॉ. पवन सिन्हा ‘गुरुजी’ ने साधकों को संबोधित किया

 गाज़ियाबाद। हिसाली गाँव में स्थित सिद्ध ध्यान मठ में परमपूज्य डॉ. पवन सिन्हा ‘गुरुजी’ जी के दिव्य सान्निध्य में  बड़े हर्षोल्लास के साथ गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया गया। गुरु-शिष्य परंपरा का यह उत्सव गुरुपूर्णिमा सनातन संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है और  प्रत्येक अषाढ़ मास की पूर्णिमा को व्यास (गुरु) पूर्णिमा के रूप में मनाने की परम्परा रही है। इस दिन गुरु की पूजा का विधान है, क्योंकि गुरु बिन ज्ञान नहीं और गुरु हमारे जीवन के समस्त अंधकार को दूर कर सौभाग्य तथा श्री का प्रकाश फैलाते हैं। जीवन के इस महोत्सव का शुभारम्भ करते हुए परमपूज्य डॉ. पवन सिन्हा ‘गुरुजी’, श्रीगुरुमाँ डॉ. कविता अस्थाना जी और गुरुपुत्र श्री आस्तिक सिन्हा अस्थाना जी ने गुरुमहाराज कुटीर में गुरुमहाराज स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी, श्रीमाँ शारदा देवी जी और स्वामी विवेकानन्द जी का तिलक वंदन किया और अपने भाव सुमन अर्पित किए। 

देश भर से आए साधकों ने भजन और वाद्य यंत्रों के मधुर संगीत पर नृत्य भी किया। गुरुपूर्णिमा के इस शुभ दिवस एवं श्रावण माह के आरंभ पर युवा अभ्युदय मिशन द्वारा प्रकृति को समर्पित ‘धरासेवा- शिवसेवा’ का भी शुभारंभ हुआ जिसमें श्रीगुरुजी, श्रीगुरुमाँ एवं गुरु परिवार के सभी सदस्यों ने फलदार एवं छायादार वृक्षारोपण भी किया। प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी देश के अलग-अलग हिस्सों में समस्त आश्रम परिवार, साधकगणों ने  वृक्षारोपण करने का संकल्प लिया। गौरतलब है कि पर्यावरण संरक्षण अभियान के प्रणेता और प्रेरणा श्रीगुरुजी सभी को श्रावण मास में वृक्षारोपण का आह्वान करते हैं और प्रत्येक वर्ष 25 हज़ार से भी अधिक वृक्षारोपण का कार्य किया जाता है। गुरुपूर्णिमा  के इस पावन सुयोग पर परम पूज्य श्रीगुरु डॉ. पवन सिन्हा जी ने सभी साधकों को अपना सन्देश और आशीर्वचन देते हुए कहा कि  मैंने बचपन में  चार पंक्तियां  पढ़ी थीं अपने गुरुदेव के लिए - 

"दान धर्म गुरुदेव को, सदा सुमिरन कीजिए।बिन गुरु ज्ञान न उपजे, चाहे लाख तू पढ़ लीजिए।"

भारत का जो ज्ञान है वह सृष्टि, ब्रह्मांड और मनुष्य की आत्मा का ज्ञान है। वह ज्ञान अपने होने का ज्ञान है। यह ज्ञान गुरु के बिना नहीं मिलेगा चाहे गुरु देह में हैं या नहीं और गुरु-शिष्य परंपरा में संतति महत्वपूर्ण है। जिस तरह एक शिष्य को गुरु की प्रतीक्षा रहती है उसी तरह गुरु को भी अपने शिष्य की प्रतीक्षा रहती है ताकि वह शिष्य ज्ञान, धर्म, समाज की सेवा करे। गुरु अपने शिष्य को अपनी सम्पूर्ण दिव्यता का दान करता है और दिव्यता का दान अत्यंत कठिन कार्य है। लेकिन यह सुनिश्चित है कि गुरु केवल सुपात्र को ही अपना सर्वस्व देते हैं। ज्ञान-प्राप्ति के लिए पूर्ण समर्पण, गुरु में पूर्ण विश्वास अत्यंत आवश्यक है। श्रीगुरुजी ने अपने वक्तव्य में एक महत्वपूर्ण बात यह कही कि अगर शिव रूठ जाएं तो ठौर है गुरु के पास लेकिन अगर गुरु रूठ जाएं तो फिर कहीं कोई ठौर नहीं है। 

श्रीगुरू जी अपने संभाषण में सात प्रकार के गुरुओं की चर्चा की - सूचक गुरु, वाचक गुरु, धर्म बोधक गुरु, विहित गुरु, परम गुरु आदि। परम गुरु को ही सद्गुरु जाता है। सद्गुरु ही हमारे जीवन के समस्त संशयों को दूर कर वैराग्य और मोक्ष की प्राप्ति करवाते हैं।  परम पूज्य डॉ.पवन सिन्हा 'श्रीगुरूजी' ने गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर सभी साधकों का आह्वान करते हुए एक शपथ लेने के लिए कहा कि सभी घर में शांति रखेंगे। मनभेद नहीं करेंगे। ईश्वर पर अखंड विश्वास रखेंगे। प्रतिदिन ध्यान करेंगे और किसी भी शास्त्र का अध्ययन अवश्य करेंगे। गुरु पूर्णिमा का पावन उत्सव हमें यह स्मरण करवाता है कि गुरु पर अखंड विश्वास अत्यंत आवश्यक है। गुरु को समझना आवश्यक है कि वे आपसे क्या चाहते हैं। सादा जीवन रखें और अपनी परिधियों के भीतर ही रखना आवश्यक है। सादा जीवन का संबंध सोच, विचार से संबंधित है। जो मिल रहा है उसी को स्वीकार कीजिए लेकिन लालच नहीं करना चाहिए। उत्तम दिनचर्या की चर्चा करते हुए श्रीगुरू जी ने कहा कि हमारी दिनचर्या ऐसी हो जिसमें एक अंश गुरु, ईश्वर का हो। एक अंश अपने लिए और एक अंश परिवार समाज के लिए रखें। यह भी आवश्यक है कि मनुष्य का मन भटकने से बचे और यह गुरु कृपा और आत्मबल से ही संभव है। अगर आप इस उत्तम दिनचर्या का पालन करते हैं तो आपके इष्ट आपको एक दिन अवश्य दर्शन देंगे। स्वामी विवेकानंद जी के जीवन की एक घटना का उल्लेख करते हुए श्री गुरुजी ने बताया कि जब स्वामी विवेकानंद जी भाषण दे रहे थे तो एक व्यक्ति वहां बैठकर ड्राइंग बना रहा था।

स्वामी जी ने उनकी ड्राइंग देखी और पूछा कि मेरे पीछे जो खड़े हैं, क्या आप उन्हें जानते हैं? उस व्यक्ति ने मना कर दिया कि नहीं, मैं इन्हें नहीं जानता। ये आपके पीछे खड़े हुए थे। दरअसल स्वामी जी के पीछे उनके गुरुदेव गुरुमहाराज जी यानी स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी खड़े हुए थे। यह घटना सभी के लिए एक बहुत बड़ा संदेश है कि एक गुरु अपने शिष्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। चाहे वे देह में हों या विदेह में हों। श्री गुरुजी ने गुरु पूर्णिमा के पवित्र दिवस पर अपने जीवन को सदमार्ग पर ले जाने की शपथ लेने का आह्वान किया। 

सिद्ध ध्यान मठ में स्थित नारायण मंदिर में देश भर से आए हुए साधकों ने नारायण स्वरूप श्रीगुरुजी के प्रति अपने भाव सुमन अर्पित करते हुए भजन गाए जिससे चहुँ ओर मधुर स्वर लहरियाँ गुंजायमान हो गईं। विशेष बात यह रही कि ऋषिकुल शाला के एक बच्चे सचिन ने भी भजन गाया और गुरु के प्रति अपने भाव अभिव्यक्त किए . वर्ष 2011 में श्री गुरूजी ने समाज के वंचित एवं गरीब वर्ग के बच्चों को शिक्षित करने के  एक महा-आन्दोलन का सूत्रपात किया और आज 2025 में  भारत भर में लगभग 25 ऋषिकुल शाला केंद्र हैं और 3 हज़ार से अभी अधिक बच्चे ऋषिकुलशाला में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.  

इस अवसर पर दिल्ली और एनसीईआर गाज़ियाबाद, मेरठ के अतीरिक्त जालंधर, अमृतसर,  मुंबई, पुणे, जयपुर, लखनऊ, कानपुर, अहमदाबाद, बड़ोदरा, सूरत, नागपुर, गोंदिया(महाराष्ट्र), रायपुर( छत्तीसगढ़) आदि अनेक राज्यों से साधकगण गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में गुरुदर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया। दूर-दराज़ क्षेत्रों में रहने वाले आश्रम परिवार के सदस्य सोशल मीडिया पर लाइव कार्यक्रम के माध्यम से गुरु के आशीर्वचनों से लाभान्वित हुए। इस अवसर पर गाजियाबाद शहर के अनेक गणमान्य अतिथि सम्मिलित हुए।