महफ़िल ए बारादरी में शायरों ने टटोली मौजूदा दौर की नब्ज़

      विशेष संवाददाता

  गाजियाबाद। महफिल ए बारादरी कार्यक्रम के अध्यक्ष शकील जमाली ने कहा कि एहसास की अपनी कोई भाषा या शैली नहीं होती है। गम और खुशी किसी भी भाषा में भी व्यक्त किए जाएं उनका भाव व शैली एक ही होगी। उन्होंने कहा कि आज के बदलते हुए परिवेश ने पूरी दुनिया को एक दूसरे के करीब ला दिया है, लेकिन आदमी के बीच की दूरियां इस कदर बढ़ गईं है कि पड़ोसी, पड़ोसी को नहीं जानता। अपनी बात उन्होंने कुछ यों रखी 'नजर पर तमाशों की यलगार है, यह दुनिया तेज रफ्तार है। यह कैसे इलाके में हम आ बसे, घरों से निकलते ही बाजार है। पड़ोसी, पड़ोसी से है बेखबर, मगर सबके हाथों में अखबार है।'

  सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल नेहरू नगर में आयोजित महफिल ए बारादरी की मुख्य अतिथि किरण यादव ने कहा कि यह महफिल अदब और नफासत की मिसाल बन गई है। उन्होंने कहा कि रिश्तों की जमीन बंजर होती जा रही है, इस दुनिया को मोहब्बत के फूल खिला कर ही बचाया जा सकता है। उनके शेर 'फूल पत्थर में खिल उठा है क्या, प्यार मुझ से उसे हुआ है क्या। अपनी जिद से वह कुछ हटा है क्या, मेरे बारे में कुछ कहा है क्या' काफी सराहे गए। कार्यक्रम का शुभारंभ सोनम यादव की सरस्वती वंदना 'मेरी इस तूलिका को एक नया वरदान देना मां!' से हुआ। संस्था की संस्थापिका डॉ. माला कपूर 'गौहर' ने अपने अशआर 'इतना मशहूर कर दिया हमको, खुद से भी दूर कर दिया हमको। कुछ कसीदे हम पर ही पढ़-पढ़ कर, दिल में मगरूर कर दिया हमको' पर भरपूर वाहवाही बटोरी।

  संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन के शेर 'शेर जब खुलता है, खुलते हैं म'आनी क्या क्या, रास्ते देता है इक मिसरा ए सानी क्या क्या। ख़त्म होती है समंदर पे कभी सेहरा में, रास्ते चुनती है दरिया की रवानी क्या क्या' भी भरपूर सराहे गए। मशहूर शायर सुरेंद्र सिंघल ने अपने चिर-परिचित अंदाज में कहा 'तो आओ मिल कर कोई हल निकाल लेते हैं, दरक रहा है यह रिश्ता संभाल लेते हैं। मोहब्बतें के लिए कम हो गए हैं दिल, मोहब्बतों को किताबों में डाल लेते हैं।' मासूम गाजियाबाद को शेर 'वह मंजिल पर पहुंचा है पैरों के जिसने न छाले ही देखे न कांटे निकाले, कई रोज का भूखा हो जो साहिब, वो झूठे निवालों में क्या देखे भाले' पर खूब सराहना मिली। हेमेंद्र बंसल ने कहा 'देखो दुनिया वालों, मेरा देश इतिहास लिखता है, अब चांद में चरखा नहीं, हिंदुस्तान दिखता है।' बच्चों द्वारा अभिभावकों के साथ किए जा रहे व्यवहार को अपने दर्द भरे गीत में डॉ. ईश्वर सिंह तेवतिया ने कुछ यों बयान किया 'भूल भुलैया है ये दुनिया, इसमें कहीं अटक जाओगे, मात-पिता की उंगली छूटी पक्‍का कहीं भटक जाओगे,

फिर तुमको पछताना होगा, फिर तुम उनको याद करोगे, फिर उनका साया मांगोगे, फिर रब से फरियाद करोगे, उस रब की ही मूरत हैं ये, इनको शीश झुकाकर देखो, मात-पिता के आसन पर तुम, खुद को जरा बिठा कर देखो।'

कार्यक्रम में सरवर हसन, जगदीश पंकज, उर्वशी अग्रवाल, सुभाष चंदर, रवि कुमार सिंह, नेहा वैद, अनिमेष शर्मा, डॉ. तारा गुप्ता, सुभाष अखिल, आलोक यात्री, वागीश शर्मा, मनीषा गुप्ता, वी. के. शेखर, अनिल शर्मा, पूनम माटिया, मंजू कौशिक, सुरेंद्र शर्मा, अशोक पंडिता, संजय त्यागी, आशीष मित्तल, आनंद कुमार, टेकचंद, ब्रिज मोहन व प्रताप सिंह की रचनाएं भी सराही गईं। कार्यक्रम का संचालन खुश्बू सक्सैना ने किया। इस अवसर पर डॉ. अजय गोयल, सुशील कुमार शर्मा, पं. सत्यनारायण शर्मा, रंजना शर्मा, वीरेंद्र सिंह राठौर, संजय भदौरिया, प्रभात कुमार, अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव, देवव्रत चौधरी, गीता रस्तोगी 'गीतांजली', दीपा गर्ग, रवि शंकर पांडेय, रवीन्द्र कुमार रवि, फरहत खान, राजेश कुमार व सिमरन सहित बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित थे।