शिक्षा का बढ़ता व्यवसाईकरण देश के विश्व गरू बनने में सबसे बड़ी बाधा - सीमा त्यागी

 हमारे देश का सिस्टम शिक्षा के मुद्दे पर कितना बेबस और असहाय है, इसका जीता जागता उदाहरण देश के निजी स्कूलों द्वारा की जा रही खुले आम लूट के रूप में देखी जा सकती है।  जिस पर राज्य और केंद्र सरकार का नियंत्रण लगभग समाप्त हो गया है।  देश की शिक्षा पर पूंजीपतियों , नेताओ और उधोगपतियो का साम्राज्य स्थापित होता जा रहा है।  जिसके कारण शिक्षा दिन प्रतिदिन महेंगी होती जा रही है और आम आदमी से दूरी और अधिक बढ़ती जा रही है।  निजी स्कूलों की मनमानी "परम् निरंकुश" सिर पर न कोई ' वाली कहावत चरितार्थ साबित हो रही है अभिभावक बच्चों के उज्ज्वल और बेहतर भविष्य के नाम पर निजी स्कूलों की मनमानी की त्रासदी झेलने को मजबूर है इसका सबसे बड़ा कारण देश के अधिकतर राज्यो में सरकारी स्कूलों की बदहाली है जिसके कारण अभिभावको के पास निजी स्कूलों की तरफ रुख करने के अलावा कोई विकल्प ही नही है।  हम सभी जानते है कि शिक्षा देश के सभी राज्यो का कल्याणकारी विषय है लेकिन पूरी तरह शिक्षा माफियाओं के कब्जे में है , किताब -कॉपी , प्रवेश शुल्क , यूनिफॉर्म और प्रत्येक वर्ष फीस वृद्धि के नाम पर मोटी कमाई की जा रही है।  निजी स्कूल संचालक एडमिसीन फॉर्म में अभिभावक के व्यवसाय और हैसियत को देखकर बच्चों के एडमिसीन को तय कर रहे है वही दूसरी तरफ शिक्षा के अधिकार से जुड़े आरटीई कानून को ठेंगा दिखा रहे है।  जिसके कारण गरीब बच्चे भी शिक्षा से वंचित हो रहे है शिक्षा अधिकारी और सरकार इस पर मूक दर्शक बनी हुई है।  अनाप शनाप मुद्दों पर कोहराम मचाने वाले सियासी दल और सरकार की पैरवी करने वाला एक बड़ा बुद्धिजीवी वर्ग शिक्षा के नाम पर हो रही लूट और शोषण के नाम पर मौन साधे हुये है बच्चों के स्कूल में प्रवेश को लेकर अभिभावक गहरी चिंता में है।  राज्यो में कैन्द्रीय विद्यालयो , नवोदय विद्यालयो में सीट न के बराबर है साथ ही देश मे सैनिक स्कूलो की संख्या सीमित है।  इन स्कूलो में एडमिसीन के लिए पेरेंट्स को सांसदों और विधायको के चक्कर लगाने के लिए मजबूर होना पड़ता है जो शिक्षा ब्यवस्था पर सरकार के खोखले दावों की पोल खोलने के लिए काफी दिखाई देता है, साथ ही शिक्षा की यह विषमता समाजिक और आर्थिक विषमता की खाई को गहरी करते हुये सविधान की मूल प्रति में दर्ज "समानता" शब्द को एक दम बेजान बना दिया है।  शिक्षा की असमानता की यह विस्तारित होती संस्कृति सरकार की तरक्की के दावे और अच्छे दिन के वादे को खारिज करने के लिए काफी दिखाई देते है शिक्षा का व्यवसाईकरण समाज मे अभिशाप बनकर जड़े गहरी करता जा रहा है।  जिस पर अगर केंद्र सरकार और राज्य सरकारें नही चेती तो वो दिन दूर नही जब देश शिक्षा में बदलाव के लिए एक बडी क्रान्ति और जनांदोलन देखेगा इसलिये सरकार को वक्त रहते शिक्षा के व्यवसाईकरण पर रोक के लिए ठोस कदम उठाने होंगे और देश के प्रत्येक बच्चे के मौलिक अधिकार शिक्षा को सस्ती और सुलभ करना होगा ।