अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
मेरी मातृभाषा हिंदी है। मुझे हिंदी भाषा पर गर्व है क्योंकि बहुत सी बोलियों को साथ लेकर चलने वाली हिंदी भाषा के पास वृहद् साहित्य है। साहित्य वह संजीवनी है जो भाषा को जीवंत रखती है।
हरेक देश का साहित्य उस देश की पहचान बनता है, इसका अनुभव मुझे विदेश यात्रा के दौरान हुआ। एक मैक्सिको वासी युवक ने बातचीत के दौरान मुझे बताया कि उसकी अपनी कोई मातृभाषा नहीं है।स्पैनिश उनकी राष्ट्रभाषा है, इसके अलावा वहाँ अंग्रेज़ी,चाइनीज़ बोली जाती हैं। मैंने घोर आश्चर्य से पूछा- तुम्हें अपना प्राचीन साहित्य मालूम है? वह किस भाषा में है?उसने कहा-नहीं कोई प्राचीन साहित्य नहीं है।
यानि वहाँ के वास्तविक लोक जीवन का परिचय देने वाला कोई साधन ही नहीं है।
मेरे विचार में तीन सौ वर्ष के स्पैनिश साम्राज्य ने वहाँ के स्थानीय कथा कहानियों को समाप्त कर दिया होगा।
दूसरा अनुभव स्कॉटिश भाषा का है। स्कॉटलैंड की अपनी भाषा है जो कि गैलिक कहलाती है। लेकिन यह भाषा मात्र बोली बन कर रह गई है।सामान्य नागरिक वार्तालाप में इसका प्रयोग करते हैं, राष्ट्रीय स्तर पर इस भाषा की कोई पहचान नहीं है।अंग्रेज़ी भाषा का प्रभुत्व ही पूर्ण रूप से है।हालाँकि कुछ चेतना गैलिक भाषा में लिखे साहित्य को लेकर है।
गत् माह यानि पच्चीस जनवरी को स्कॉटिश कवि रॉबर्ट बनर्स का जन्मदिन राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया गया।बनर्स नाइट के रूप में यह उत्सव दुनिया के बहुत से देशों में मनाया जाता है।
स्कॉटलैंड के स्कूलों में गैलिक भाषा में लिखी गई कविताओं को बच्चों को याद करने,उच्चारण सीखने और फिर गाकर सुनाने की प्रतियोगिता रखी जाती हैं।यह सब देखकर मुझे प्रतीत हुआ कि यहाँ अपनी भाषा को साहित्यकार के ज़रिए जीवंत रखा जा रहा है।
अपने छोटे जीवनकाल में (1759-1788) राबर्ट बनर्स अपने आवारा जीवन के कारण विवादों में घिरे रहे। लेकिन अपनी कविताओं के कारण स्कॉटलैंड के सांस्कृतिक इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति बन कर अमर हो गए।यह मातृभाषा ही का चमत्कार है।
मेक्सिको और स्कॉटलैंड के विपरीत वेल्स ने अपनी मातृभाषा को जीवंत रखा हुआ है। वेल्स में आज भी स्कूलों में वेल्स भाषा को दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है।पहली भाषा राष्ट्रीभाषा अंग्रेज़ी है।वेल्स भाषा में साहित्य भी लिखा जा रहा है।
हमारा देश विभिन्न भाषाओं का देश है। प्रायः सभी राज्यों में रहने वाले भारतीय नागरिक अपनी मातृभाषा पर गर्व करते हैं।मराठी,गुजराती, पंजाबी, तमिल,तेलुगु, कन्नड़ तथा अन्य भाषाओं में उच्च कोटि का साहित्य लिखा जा रहा है।
यह समस्त साहित्य हमारे भारतदेश का गौरव है, इससे एक राष्ट्र शक्तिशाली होता है।
मैं ऊपर लिखी अपनी पंक्ति दोहराती हूँ-साहित्य वह संजीवनी है जो भाषा को जीवंत रखती है।
अपनी मातृभाषा पर गर्व करें, अपनी मातृभाषा में साहित्य रचें।
लेखिका-रश्मि पाठक
अबरडीन,स्कॉटलैंड (यूके)