हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामें गुलिस्तां क्या होगा

( सुशील कुमार शर्मा, स्वतन्त्र पत्रकार)

     गाजियाबाद। गणतंत्र दिवस के अवसर  पर गाजियाबाद में “अखिल भारतीय कवि सम्मेलन “ और “ कुलहिंद मुशायरे” की परम्परा पुरानी है। लाल बहादुर शास्त्री जी की कद-काठी के हर प्रसाद  शास्त्री जी इसके  जनक थे। शास्त्रीजी श्री सनातन धर्म  इन्टर कालिज में अध्यापक थे। हिन्दी- भवन की  स्थापना भी उन्होने ही की थी। कवि सम्मेलन की शुरुआत उन्होंने पहले श्री सनातन धर्म  स्कूल  से ही की थी।रामलीला मैदान में तब स्टेज नहीं  था। श्री सनातन धर्म  में हुए एक कवि  सम्मेलन  का आकाशवाणी ने सीधा प्रसारण भी किया था।बाद में जब रामलीला मैदान में स्टेज बन गया  तो वहीं  कवि सम्मेलन होने लगे। सेठ बी. बी. बिन्दल ( मालगाडी के डिब्बे बनाने वाली साहिबाबाद स्थित माडर्न इन्डस्टीज के मालिक), चौधरी सिनेमा (अब चौधरी माल) के मालिक हरियन्त चौधरी और फिल्म फाईनेन्सर राजेन्द्र मंगल कवि सम्मेलन  और मुशायरे के संरक्षक/अध्यक्ष रहते  थे। कवि सम्मेलन  के लिए ”लोक परिषद” और मुशायरे के लिए “अदबी संगम” संस्था  का गठन किया गया।  इन्हे निर्देश होता था कि आयोजन से लोगों को जोडने के लिए चन्दा करो, कमी रह जायेगी तो उसे वह पूरा करेंगे। जब रामलीला मैदान में कवि सम्मेलन  होने लगे तो उसी पंडाल में अगले  दिन मुशायरे की परम्परा  भी शुरू की गयी थी।मुशायरे की जिम्मेदारी  शायर जकी तारिक को सौंपी गयी। दोनो आयोजन के संरक्षक यही शहर  रईस होते थे । पहले यह कार्यक्रम सार्वजनिक होते थे । आज  प्रख्यात  कवि  और शायर आयोजन में आने के पचास हजार से एक लाख और अधिक भी लेते हैं। एक जमाना वह था जब राजेन्द्र मंगल के बुलावे पर उनके निवास पर आये दिन होने वाली  अधिकारियों की काकटेल पार्टी में  महाकवि कुँअर बेचैन और ओज के राष्ट्रीय कवि कृष्ण मित्र जैसे दिग्गज कवियों को उनके मनोरंजन के लिए काव्यपाठ करना पडता  था। मित्र जी तो मित्रों तक से इस दुरूह स्थिति  का जिक्र करने से नहीं  हिचकिचाते थे।

     हर प्रसाद शास्त्री जी अकेले शख्स  थे जो जब तक जीवित रहे साहित्यिक गतिविधियों  के केन्द्र रहे थे। जब चौधरी सिनेमा के गोष्ठी -कक्ष में आयोजन होने लगे थे तो शास्त्री जी के संचालन में वहाँ हुए अनेक आयोजनों में देश के अग्रज पत्रकार, साहित्यकार और कवि व शायर आये हैं। उनके द्वारा  स्थापित हिन्दी-भवन को अपने-अपने  पुस्तक भंडारों की पुस्तकें देने की भी घोषणायें हुई थी। लेकिन शास्त्री जी के निधन के बाद उस समय कमेटी के कुछ सदस्यों  ने अपने परिवार व मित्रों को भरकर इस पर कब्जा कर लिया। हिन्दी -भवन जिस उद्देश्य  से बना था उसका भी ध्यान  नहीं  रखा। जिस सभागार का नाम हर प्रसाद शास्त्री के नाम पर रखा जाना चाहिए था वह भी  नहीं  रखा। हिन्दी भवन को आज दिनेश चन्द्र गर्ग  सभागार के नाम से जाना जाता है जबकि दिनेश चन्द्र  गर्ग का इसके निर्माण में कोई योगदान नहीं  था। लेकिन धन खर्च कर उनके  परिवार  द्वारा इसी शर्त पर सभागार फर्नीशिंग करवाया गया।

       शास्त्री जी के निधन के बाद अब तो राजेन्द्र मंगल ,बी. बी. बिन्दल और हरियंत चौधरी का भी   निधन हो गया । जकी तारिक ने दिवंगत प्रवीन गुप्ता के साथ मिल कर फिर अदबी संगम को जिन्दा करने की कोशिश की पर दुर्भाग्य से उनका यह साथी भी अल्प  आयु में साथ छोड गया। पुराने लोग बताते हैं कभी मेंहदी नजमी, गुर शरण दयाल अदीब, शम्स गाजियाबादी, जमील हापुडी, ईशरत किरतपुरी आदि शायरों की “शामे शनिचर” हर शनिवार को टाऊन हॉल  के सभागार में होती थी। कामरेड शिव राज सिंह वकील, सुदर्शन चेतन, गोपाल कृष्ण कौल,  ब्रजनाथ गर्ग, अमर नाथ सरस आदि ऐसे आयोजनो को  करते  थे। गत चार वर्ष पूर्व फिर  बहुत  साल के अन्तराल के बाद जकी तारिक ने “कुलहिन्द मुशायरे”का बिगुल बजाया था।उनके अनुरोध पर तब मैंने उनकी तीन मीटिंग अनुज  अशोक  कौशिक के साथ अटेंड की थी।तब यह जानकर आश्चर्य हुआ था कि इस संस्था  का रजिस्ट्रेशन  कभी  नहीं  कराया गया  । कोई  कमेटी स्थाई नहीं  बनायी गयी । कभी चुनाव भी नहीं  हुआ। जब जो सहयोगी मिल गये  उन्हें  जोडकर आयोजन कर लिया। उस बार भी उन्होंने ऐसे  साथी जोडे थे जो हरेक अकेला ही आयोजन करने में सक्षम था। धनकुबेरों का स्वयं को ही  अध्यक्ष,  संयोजक या स्वागताध्यक्ष  बनना भी मुझे असहज लगा था ।इन्ही ग्रुप का हिन्दी भवन पर स्थायी कब्ज़ा बना हुआ है। तब मैंने अनुज अशोक कौशिक से विमर्श कर अदबी संगम का रजिस्ट्रेशन कराया। जिसमें मैं ( सुशील कुमार शर्मा) संयोजक,जकी तारिक अध्यक्ष और अशोक कौशिक सचिव बनाए गए थे। रामलीला मैदान के जानकी भवन के सभागार में 23 जनवरी 2020 को कुलहिंद मुशायरे का वृहद आयोजन भी किया। जो देर सायं प्रारम्भ होकर सुबह तक चला। उसमें भी मेरे अनुरोध पर स्थानीय प्रख्यात शायरों मासूम गाजियाबादी, गोविंद गुलशन , तूलिका सेठ,मनु भारद्वाज मनु,अजय फलक आदि को आमंत्रित तो किया गया और वह आये भी लेकिन उन सभी को कार्यक्रम के अंत में काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया  लेकिन सम्मान शुल्क नहीं दिया गया। मैंने वही इस पर नाराजगी जताई थी और बाद में संयोजक पद और सदस्यता से इस्तीफे की सार्वजनिक घोषणा भी कर दी थी। इसके बावजूद चार वर्ष बाद भी न तो जकी तारिक ने अदबी संगम की कोई मीटिंग की और न ही कोई आयोजन किया।

     उल्लेखनीय है लोक परिषद का गठन कर उसका संचालन हर प्रसाद शास्त्री  के बाद दिवंगत तेलू राम काम्बोज और कृष्ण मित्र  ने संभाला था। अब यह संस्था भी मित्र जी के सुपुत्र की पाकेट संस्था  बन कर रह गयी है।  वह अपने राजनीतिक लाभ के आयोजन इस संस्था  के माध्यम से करते रहते हैं। लोक परिषद और अदबी संगम की  इस बात से भी मैं  असहमत रहा हूं कि बाहर से कवि और शायरो को  बुलाकर बड़ी-बडी धनराशि  देते हैं, लेकिन स्थानीय  कवि और शायरों को कोई शुल्क नहीं  देते। जबकि गाजियाबाद  में बड़ी  संख्या  में प्रख्यात  कवि  और शायर रहते हैं।  

   मुझे अपने  पत्रकार साथियों पर फक्र है कि “गाजियाबाद  जर्नलिस्ट  क्लब “ के माध्यम से मैने 1980 के दशक से 2000 तक  केवल स्थानिय कवियों व शायरों के सम्मान  के लिए प्रति वर्ष आयोजन किये थे तथा दिग्गज कवि व शायरों से उन्हें  सम्मानित कराते थे। यह भी सर्वविदित है कि आज महानगर के अनेक  कवि व शायर देश में ही नहीं  बल्कि विदेशों में भी नाम रोशन कर रहे हैं।

    इस क्षेत्र में बहुत  बड़ा काम सुभाष चन्दर व आलोक यात्री शिक्षाविद माला कपूर व इंजीनियर शिव राज सिंह के सहयोग से कथा-संवाद व बारादरी के मासिक आयोजन करके  कर रहे हैं। धनंजय सिंह व प्रवीण कुमार पहले से ही अमर भारती के आयोजनों से कर रहे हैं। हिंडन पार क्षेत्र में कवि व पत्रकार चेतन आनंद मेवाड़ इंस्टीट्यूट के सहयोग से लगातार कवि गोष्ठीयां और स्थानीय कवियों की पुस्तकों के प्रकाशन और विमोचन के कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। इनके अतिरिक्त भी कई हिन्दी सेवी संस्थाएं इस क्षेत्र में वर्तमान में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।