हेल्थ मैनुअल एक्ट के अनुसार 3 लाख 84000 सफाई कर्मचारियों की भर्ती की आवश्यकता - प्रदीप चौहान बाल्मीकि

गाज़ियाबाद। प्रदीप चौहान बाल्मीकि प्रदेश अध्यक्ष अखिल भारतीय वाल्मीकि महासभा उत्तर प्रदेश प्रदेश महामंत्री सफाई कर्मचारी संयुक्त मोर्चा उत्तर प्रदेश ने एक पत्र द्वारा अपने विचार रखते हुए कहा कि दबे कुचले समाज के लिए बेहद जरूरी है, इसलिए कुछ चीजें आपको बता रहा हूं उम्मीद करता हूं कि आपका सहयोग मिलेगा। उत्तर प्रदेश में उसकी आबादी के अनुसार हेल्थ मैनुअल एक्ट के अनुसार 3 लाख 84000 सफाई कर्मचारियों की भर्ती की आवश्यकता। है सिर्फ शहरी क्षेत्र में वर्तमान में 1 लाख 31,000 सफाई कर्मचारी प्रदेश में कार्यरत हैं आपको जानकर ताज्जुब होगा के इनको तीन प्रकार का वेतन दिया जाता है। संविदा कर्मचारी का आउटसोर्सिंग कर्मचारी का स्थाई सफाई कर्मचारी का जबकि यह सफाई कर्मचारी काम सिर्फ सफाई का ही करते हैं दुर्भाग्यपूर्ण घटना यह है सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार समान कार्य का समान वेतन किसी भी सरकार द्वारा इनको नहीं दिया जाता। इनके आंदोलन टुकड़ों में होते हैं क्योंकि इनके यहां पर नेता बहुत हैं सवाल यह है कई बार सफाई कर्मचारी आयोग बनने के बाद भी आज तक किसी भी सफाई कर्मचारी आयोग की सिफारिशें पूर्ववर्ती सरकारों ने स्वीकार नहीं की चाहे उत्तर प्रदेश रहा हो चाहे केंद्रीय आयोग रहा आज उनके सामने समस्या पैदा हो गई है। सफाई के निजी करण की निजी करण में सफाई कर्मचारी को पूरे महीने की तनख्वाह 6000 या 5000 दी जाती है ऐसी स्थिति में यह समाज जिसमें भगवान वाल्मीकि ने जन्म लिया यह समाज जिसमें डॉक्टर बी आर अंबेडकर पैदा हुए कैसे अपना सामाजिक एवं राजनीतिक और आर्थिक उत्थान करेगा। आज कोविड जैसी महामारी में पहली बार ऐसा हो रहा है की सफाई कर्मचारी की स्थाई भर्ती नहीं की गई इससे पूर्व जब भी महामारी आई हैं तब तक सफाई कर्मचारी की भर्ती नियमित रूप से की गई थी। आज इन भर्तियों पर प्रतिबंध क्यों है यह सवाल क्या यह समाज अपनी आर्थिक दशा के लिए जीवन भर रोता रहेगा क्या बाल्मीकि और भीम के वंशज अपना राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक उत्थान नहीं कर पाएंगे क्या सरकार के पास इस वर्ग को लेकर कोई विशेष योजना है मुझको लगता है नहीं है क्योंकि बहुत आंदोलन हुए बहुत मोर्चे बने परंतु सरकार ने इस वर्ग की तरफ गहराई से नहीं देखा जिस कारण यह वर्क सबसे अंतिम पंक्ति में निरंतर चला जा रहा है। और निरंतर जाता रहेगा नारा था सिम शिक्षित बनो संगठित बनो संघर्ष करो परंतु मुझको लगता है कि संघर्ष की राह पर यह नारा सफल हो रहा है, बेरोजगारी के हालात यह है कि सही से अपना घर बना कर भी इस देश का सफाई मजदूर रह नहीं पा रहा है मायावती जी ने तो हद ही कर दी थी इनकी नौकरियां भी सभी वर्गों में बांट दी जबकि सही मायने में सफाई की नौकरी का यदि कोई हकदार था तो वह वाल्मीकि समाज था। जब अच्छे वेतन की नौकरियां आई तो सब में बांट दी और जब ठेकेदारी की बात आई तो बाल्मीकि समाज के लोगों के लिए दरवाजे खोल दिए ऐसा कब तक समाज के साथ  होता रहेगा आयोग की सिफारिश संसद में क्यों नहीं आई आयोगों को इतना कमजोर क्यों किया गया यह सवाल बहुत सारे मेरे मन में उठते हैं क्योंकि मैं भी सफाई कर्मचारी का बेटा हूं।. आप सभी का सहयोग चाहता हूं इनके हालातों पर ध्यान दें इनकी मदद करें इस समाज के लिए यही आपकी सच्ची निष्ठा होगी।