रूढ़ तंत्र में फँसकर उसमें जकड़े गीत नहीं गाए - डॉ सुभाष वसिष्ठ

गाज़ियाबाद। हर वर्ष की भाँति इस बार भी ऋतुराज वसंत के स्वागत में अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान ने ‘वसंतोत्सव’ का आयोजन किया।भागीरथ पब्लिक स्कूल, संजयनगर ग़ाज़ियाबाद के भव्य सभागार में संपन्न हुए इस सृजन-उत्सव में सरस्वती पूजन के साथ-साथ क़रीब 20 कवियों ने काव्य-पाठ किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात नवगीतकार एवं रंगकर्मी डॉ सुभाष वसिष्ठ ने कहा कि अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान पिछले एक दशक से ग़ाज़ियाबाद एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के साहित्यिक परिवेश को समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।इस तरह के साहित्यिक आयोजनों से कला-साहित्य के क्षेत्र में ग़ाज़ियाबाद की एक विशिष्ट पहचान बन रही है।उस पहचान को बनाने में अमर भारती साहित्य संस्कृति  संस्थान एक अहम भूमिका अदा कर रहा है।अपने कुछ गीत सुनाते हुए उन्होंने अपने भाव कुछ यूँ अभिव्यक्त किए- 

हम तो बंधु निराला वंशज नहीं फ़्रेम में बंध पाए

रूढ तंत्र में फँसकर उसमें ,जकड़े गीत नहीं गाए।

माघ पूर्णिमा के उपलक्ष्य में प्रख्यात नवगीतकार डॉ योगेन्द्र दत्त शर्मा ने अपने एक गीत का आमुख कुछ यूँ बयां किया-

कुंभ के इस पर्व-क्षण में

छा रही कैसी उदासी !

घुल रही जैसे अमा मे  यह शिशिर की पूर्णमासी !

कार्यक्रम के आरंभ में नेहा वैद ने सरस्वती वंदना की संगीतमय प्रस्तुति दी।काव्य पाठ करने वाले कवियों में डॉ धनंजय सिंह, डॉ योगेन्द्र दत्त शर्मा, जगदीश पंकज, वेद शर्मा वेद, सोमदत्त शर्मा, कमलेश त्रिवेदी फ़र्रूख़ाबादी, विपिन जैन, दिनेश दत्त शर्मा वत्स के अलावा प्रवीण कुमार, विष्णु सक्सेना, दीपक श्रीवास्तव, बृजेश सिंह, सैय्यद अली मेहदी, सरिता शर्मा, ममता सिंह राठौर आदि शामिल रहे।

कार्यक्रम का संचालन संस्थान के महासचिव प्रवीण कुमार ने किया।इस अवसर पर भागीरथ पब्लिक स्कूल के निदेशक अमिताभ सुकुल, वरिष्ठ पत्रकार अमरेन्द्र राय, वित्तीय सलाहकार पुनीत श्रीवास्तव, राजभाषा विभाग में सहायक निदेशक रघुवीर शर्मा आदि सुधी श्रोता मौजूद रहे।