नज़फगढ़। श्री हंस नगर आश्रम,पंडवाला कलां,नई दिल्ली में आयोजित सदभावना सम्मेलन में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए सुविख्यात समाजसेवी श्री सतपाल महाराज ने कहा कि हमारे देश की पहचान आपसी विश्वास, सहयोग और सदभाव पूर्ण एकता से मानव सेवा पर टिकी है। इसीलिए हमारे संत-महापुरूषों ने विश्व को एक परिवार मानकर वसुधैव कुटुंबकम् की बात की। बिना किसी मतभेद के कल्याणकारी विचारों को प्रसारित करने का लाभ धीरे-धीरे लोग भूल गए। उन्होंने कहा कि आज विश्व में सदभावना की जरूरत है। क्योंकि सदभावना की शक्ति ही समाज में परिवर्तन करती है। श्री महाराज जी ने कहा कि मोबाइल की तरह हम भी चार्ज होते हैं। संसार में कभी भटकते हैं तो संतों का सत्संग हमें जीपीएस की तरह दिशा दिखाता है। दार्शनिकों ने कहा कि जो नहीं है उसे मानव चेतना जरूर देखना चाहती है। सामने की वस्तु मन नहीं देखता। अक्सर दूसरे की ओर देखता है, लेकिन जीपीएस में हम जो स्थान फीड करते हैं तो उसकी जानकारी हमें मिल जाती है।
संतों ने कहा- मन मथुरा दिल द्वारिका, काया काशी जान। दसवां द्वारा देहरा, तामे ज्योति पहचान।। इस शरीर के अंदर छिपे ज्ञान की स्थिति को समझने के बजाय हम बाहर भटक रहे हैं।तभी संतों ने संकेत किया- बंगला भला बना दरवेश, जिसमे नारायण परवेश।। जनम से मृत्यु के बीच हमें जीवन को सार्थक करने हेतु यह अनुभव प्राप्त करना होगा। संतों से भेंट हुई तो ईश्वर का गुणानुवाद सुनने को मिला, इसीलिए तत्वदृष्टा गुरू की महिमा शास्त्रों में गायी गई।
श्री महाराज जी ने कहा कि शुरू में जब बल्ब बना तो तार लाल होकर जल गया, ऑक्सीजन नहीं मिली तो नहीं जला। पर उसमे केमिकली निष्क्रिय गैस को डाला,तब बल्ब जलता रहा। यही मूल बात जीवन में समझनी है कि माया से प्रभावित हुए बिना ही हमे उस शक्ति का अनुभव होगा।
उन्होंने कहा कि पुराने किले जैसे पाण्डवों का किला देखें कैसा वैभव था उनमें रहने वाले कहां चले गए? युद्ध के बाद भगवान ने कहा- अर्जुन उतरो। बाद में वह उतरे तब रथ बिखर कर जलकर गिर गया। सिद्धियों और अहम से परे है, वही वैरागी है, ईश्वर प्रेमी है। किसी भी स्थान को स्वर्ग या नरक बनाना हमारा काम है। गुरू की आज्ञा में सेवा से कितना जनसमूह सदभावना सम्मेलन में आ रहा है। आज बाहर भटकने की जरूरत नहीं। अंगद देव ने गुरु महाराज की सेवा किस भाव से की। भक्त बूढ़ा का अनुपम सेवा भाव था। सिख धर्म मे सेवा के ऐसे उदाहरण हैं।
ईश्वर के व्यापक शब्द को जानकर हम उसके सेवन से वंचित न रहें।बीज वही उगेगा जो उपजाऊ धरती मे रोपित हो। अध्यात्म कहने का विषय नहीं है। "कथनी मीठी खांड सी, करनी विष की लोय। कथनी छोड़ करनी करे, तो विष से अमृत होय।" राजा जनक ने खुद को सपने में एक भिखारी पाया पर गुरू ज्ञान से अपने स्वयं को अनुभव कर अविनाशी सत्य का साक्षात्कार किया। कलिकाल में अपना मत रखकर शास्त्रों की बात को भी कुछ लोगों ने बदल दिया। पर भगवान ने कहा कि- मानहु एक भक्ति कर नाता। जात पात कुल की बड़ाई को नहीं माना। बिना आत्मा का अनुभव किए कर्म सुधार नहीं सकते, यह ज्ञानी ही जानता है। अतः सदभावना की शक्ति से परिवार से समाज व राष्ट्र को सुखी समृद्ध बनाने के संकल्प को लेकर यहां से जाएं और जीवन को प्रकाशित करें।