हिन्दी के प्रति हीनता का नहीं, स्वाभिमान का भाव रखें हिंदी भाषी - आलोक पुराणिक

गाज़ियाबाद। सुप्रसिद्ध व्यंगकार आलोक पुराणिक ने कहा कि अधिकांश हिंदी भाषी लोग ही हिन्दी के प्रति हीनता का भाव रखते हैं। देश में हिन्दी को स्वाभिमान की भाषा माना जाना चाहिए।हम अंग्रेजी में लिखने-बोलने में गर्व का अनुभव करते हैं। हम भारतीय ही हिन्दी को महत्व न देकर अंग्रेजी को प्राथमिकता देते हैं। हमारी इसी सोच के कारण देश की राजभाषा होने के बावजूद हिन्दी की स्थिति दयनीय है।

श्री पुराणिक हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में यहां आरडीसी राजनगर में अमर भारती साहित्य संस्कृति संस्थान द्वारा आयोजित हिन्दी पर परिचर्चा व काव्य गोष्ठी में बतौर विशिष्ट अतिथि बोल रहे थे।उन्होंने कहा हमें अंग्रेजी से बैर नहीं, लेकिन भारतीय स्वयं ही हिन्दी को दोयम दर्जे की भाषा मानते हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

वरिष्ठ समाजशास्त्री डॉ जे. एल. रैना ने कहा कि हिन्दी को वास्तविक सम्मान तभी मिल सकता है, जब कॉरपोरेट जगत अंग्रेजी की बजाय अपने कामकाज हिन्दी मे करने को प्राथमिकता दे। विज्ञान और तकनीकी शिक्षा की किताबें हिन्दी में हों। आज भी उच्च न्यायालयों व उच्चतम न्यायालय में आवश्यक रुप से अंग्रेजी में ही न्यायिक कार्य हो रहा है। यदि वहां व्यवहार में राष्ट्र भाषा की स्वीकृति हो जाये, तो काफी हद तक हिन्दी की स्थिति स्वतः ही बदल जाएगी।

इस अवसर पर वरिष्ठ अधिवक्ता एवं कवि - कथाकार प्रवीण कुमार के तीसरे काव्य संग्रह  'नियंता नहीं हो तुम" का अनौपचारिक विमोचन भी किया गया। विमोचन अवसर पर प्रवीण कुमार ने अपनी नई पुस्तक की दो कविताओं का पाठ किया, जिन्हें बहुत सराहा गया। गोष्ठी में आए कलमकारों ने उन्हें तीसरी पुस्तक के प्रकाशन पर हृदय से बधाई दी।

 इससे पूर्व कवि गोष्ठी में वरिष्ठ गीतकार डॉक्टर रमेश कुमार भदोरिया, सीताराम अग्रवाल, विष्णु सक्सेना, वेद प्रकाश शर्मा ‘वेद’, दिनेश दत्त शर्मा, सुदामा पाल, ममता सिंह राठौर, विपिन जैन, राम कुमार भल्ला आदि ने काव्य पाठ किया।

 कार्यक्रम में वरिष्ठ छायाकार कुलदीप, अधिवक्ता के पी सिंह, अनुभव प्रकाशन के निदेशक पराग कौशिक, अभिषेक  कौशिक, वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र बच्चन, नित्यानंद तुषार आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन संस्थान के महासचिव प्रवीण कुमार ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉक्टर जे.एल. रैना ने की।