भारत मे मेडिकल की पढ़ाई मेहँगी होने के कारण विदेश पलायन को मजबूर छात्र - सीमा त्यागी

भारत देश मे मेहँगी होती स्वास्थ्य शिक्षा छात्रों को विदेश पलायन को मजबूर कर रही है जो भारत सरकार के लिए चिता का विषय होना चाहिए। छात्रों का मेडिकल शिक्षा के लिये पलायन को रोकने के विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर सार्थक कदम उठाए जाने चाहिए।  भारत में केवल 595 मेडिकल कॉलेज है जिसमे 302 सरकारी मेडिकल कॉलेज , 218 प्राइवेट मेडिकल कॉलेज , 47 डीम्ड यूनिवर्सिटी , 03 सेंट्रल यूनिवर्सिटी ,19 एम्स मेडिकल इंस्टीट्यूट इन सभी सरकारी एवम प्राइवेट कॉलेजों में कुल 88, 370 सीटे एमबीबीएस की है। भारत मे मेडिकल की मेहँगी शिक्षा का अनुमान आप इसी से लगा सकते है कि  छात्र नैशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट यानी नीट जैसी कड़ी परीक्षा पास तो कर लेते हैं, लेकिन उनमें से अनेको छात्र ऐसे होते हैं जिन्हें आसमान छूती फीस के चलते डॉक्टर बनने का सपना छोड़ना पड़ जाता है।  अभी कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने उत्तर प्रदेश में नौ मेडिकल कॉलेजों का उद्घाटन किया। लेकिन यह तो ऊंट के मुंह में जीरे वाली बात साबित होने के समान  है। इन सभी कॉलेजों को मिलाकर भी लगभग  700 मेडिकल सीटें ही बन रही हैं। यह हाल उस देश का है, जहां एक हजार 500 लोगों पर बमुश्किल एक डॉक्टर है।  कोविड की वैश्विक महामारी के दौरान पूरे देश ने  देखा कि डॉक्टरों की संख्या कम होने से देश की  जनता को क्या क्या  दिक्कत होती है। और कितनी कठनाइयों का सामना करना पड़ता है भारत मे  मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की बात करें तो इस बात का कोई सटीक अनुमान नहीं है कि देश में कितनी अंडर-ग्रैजुएट मेडिकल सीटें हैं।अनुमान यह है कि  सरकारी कॉलेजों में लगभग 40 हजार अंडर-ग्रैजुएट सीटें हैं। इन कॉलेजों में पढ़ाई प्राइवेट कॉलेजों के मुकाबले बहुत  सस्ती है। सरकारी कॉलेजों में 5 साल के पूरे एमबीबीएस कोर्स के लिए फीस आमतौर पर एक लाख रुपये से कम ही होती है भारत देश में 60 हजार सीटें प्राइवेट कॉलेजों और डीम्ड यूनिवर्सिटीज में हैं। ये तो फीस के रूप में सालाना लगभग 18 लाख से 30 लाख रुपये तक छात्रों से  निचोड़ लेते हैं। यानी पांच साल का कोर्स है तो लगभग 90 लाख से लेकर एक करोड़ रुपये तक छात्रों को देने ही होते है  भारत में मेडिकल एजुकेशन इतनी महंगी होने का फायदा दूसरे देश उठा रहे हैं। और अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूती दे रहे है  रूस, किर्गिस्तान और कजाकिस्तान तो इस मामले में आगे हैं ही, फिलीपींस और अब तो भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश भी मेडिकल में दाखिले का एक बड़ा ठिकाना बनता जा रहा है। 15वें फाइनैंस कमीशन की रिपोर्ट में कहा गया, 'डॉक्टर बनने की चाहत रखने वाले कई छात्र विदेश के मेडिकल कॉलेज चुनते हैं। ऐसे छात्रों की संख्या बढ़ रही है। 2015 में लगभग 3 हजार 438 छात्रों ने विदेश में दाखिला लिया। 2019 में लगभग 12 हजार 321 छात्रों ने देश से बाहर दाखिला लिया।' बांग्लादेश का पैकेज ऐसा है कि वहां लगभग 25 लाख से 40 लाख खर्च होते हैं। फिलीपींस में मेडिकल स्टूडेंट लगभग 35 लाख रुपये में एमबीबीएस कोर्स पूरा कर सकता है। रूस में यही काम लगभग 20 लाख रुपये में हो सकता है। इसमें हॉस्टल का खर्च भी शामिल है।  एक ओर जहां देश मे  छात्र यह सोचकर जान दे रहे हैं कि डॉक्टर बनने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा, वहीं एक के बाद एक तमाम सरकारें स्वास्थ्य सुविधाओं पर खर्च या तो बढ़ा नहीं पाईं या बढ़ाना ही नहीं चाहतीं।  वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने साल 2020 की एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत को दरअसल कम से कम 18 लाख डॉक्टरों और नर्सों की जरूरत है। तब जाकर हर 10 हजार की आबादी पर साढ़े 44 प्रफेशनल हेल्थ वर्कर्स का मिनिमम स्टैंडर्ड हासिल हो पाएगा। अब समय आ गया है कि मेडिकल के क्षेत्र में भारत को मजबूत करने के लिए मेडिकल शिक्षा को सस्ती कर भारत से  पलायन कर विदेश जाने वाले छात्रों को अपने ही देश मे सस्ती  मेडिकल शिक्षा का विकल्प देकर आपदा में अवसर की चुनोती को स्वीकार करना होगा ।    

सीमा त्यागी - अध्यक्ष  गाज़ियाबाद पेरेंट्स एसोसिएसन