गाजियाबाद। सुप्रसिद्ध लेखक, संपादक और आलोचक शिव नारायण ने 'कथा रंग' द्वारा आयोजित कहानी की पाठशाला 'कथा संवाद' में अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि लेखन में किसी भी तरह की कीमियागिरी नहीं होनी चाहिए। कहानी लिखते समय आपको यह मालूम होना चाहिए कि कहानी का सौंदर्य क्या है? उन्होंने कहा कि कहानी द्वंद्व से बड़ी बनती है। लगभग 9 दशक पहले लिखी गई 'कफन' पर भले ही कई प्रश्नचिन्ह लगे हों लेकिन संपूर्ण कहानी अलग-अलग किस्म के द्वंद्व लेकर चलती है। उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों से आ रहीं ताजा खबरें समाज की पतनशीलता का उदाहरण है। लेखक ही ऐसी यथास्थिति को बदल सकता है।
होटल रेडबरी में आयोजित 'कथा संवाद' को संबोधित करते हुए श्री नारायण ने कहा कि द्वंद्व से संघर्ष पैदा होता है और संघर्ष से यथास्थिति बदलती है
उन्होंने 'रामचरित मानस' का उदाहरण देते हुए कहा कि 600 साल पूर्व रचित ग्रंथ भी कई तरह के द्वंद्व पर आधारित है। 600 से अधिक शोधार्थी उस पर शोध कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य का लक्ष्य समाज का हित होना चाहिए। साहित्य शब्द की मीमांसा करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य में जो 'सहित' है वह रचना में कई चीजों का समावेश है। जिसमें 'हित' की सही यानी उत्तम भावना समाहित है। 'त' का अर्थ यथार्थ से है। उन्होंने सुनी गई कहानियों को केंद्र में रखते हुए कहा कि समाज के यथार्थ को मूल संवेदना के साथ पकड़ना ही लेखन की सार्थकता है। यह शेर 'ऊपर ऊपर से क्या पढ़ लोगे, जीवन है अखबार नहीं है' सुनाते हुए उन्होंने कहा कि किसी घटना का वृतांत कहानी नहीं है। नए लिखने वालों को घटना को कल्पना के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि 'कथा रंग' की ऐसी कार्यशाला की देश में दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती, जहां युवा व प्रौढ़ रचनाकारों को संयुक्त रूप से मांजने और गढ़ने का काम किया जा रहा हो। उन्होंने रूबी भूषण के कथा संग्रह 'टेम्स नदी बहती रही' की कई कहानियों पर भी वक्तव्य दिया।
मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध लेखक और साहित्य अकादमी के उप सचिव डॉ. देवेंद्र कुमार 'देवेश' ने कहा कि कथा संवाद में सुनाई गई कहानियां वर्तमान स्थितियों से ही उठाई गई हैं। जिनमें कोई नयापन नहीं होने के बावजूद एक ही परिस्थिति पर लिखी गई एक कहानी अविश्वसनीय लगती है, दूसरी सच के करीब प्रतीत होती है। उन्होंने कहा कि एक कहानी में यथार्थ को सच के रूप में परोसा गया है, जबकि दूसरी कहानी में देखे गए यथार्थ को झूठ के साथ भरोसा गया है। उन्होंने कहा कि रचनाकार अगर झूठ न बोले तो दुनिया को सच जानने का अवसर मिल ही नहीं सकता। उन्होंने कहा कि 'कफन' कहानी जिस यथार्थ पर खड़ी की गई है वह सच प्रतीत नहीं होता, लेकिन समाज के जिस यथार्थ को सब देखते हैं उसके पीछे का सच सिर्फ लेखक को ही दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि यह अच्छी बात है कि गाजियाबाद के नए लेखकों को आगे बढ़ाने के लिए अच्छा माहौल मिल रहा है।
विशेष आमंत्रित अतिथि सुप्रसिद्ध लेखक और संपादक बलराम ने कहा कि इस आयोजन में यह अच्छी बात देखने को मिली कि जहां आलोचकों में सच कहने का साहस है, वहीं रचनाकार भी तीखी आलोचना को साहस के साथ स्वीकार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आत्मा का मनोरंजन ही कहानी का उद्देश्य है। आत्मा को छूने वाली कोई झूठी कहानी भी सच लग सकती है और सच पर आधारित कहानी भी झूठी हो सकती है। उस कहानी की कोई सार्थकता नहीं जो आत्मा को न छुए। सुनने वाले को कहानी सच्ची लगनी चाहिए, यही लेखक की उपलब्धि है। सच और झूठ के भेद को जानना ही लेखकीय कौशल है।
वरिष्ठ लेखिका व विशेष आमंत्रित अतिथि रूबी भूषण ने कहा कि कथा रंग में आकर वह कहानियों के 'रंग' में रंग गई हूं। उन्होंने कहा कि इस आयोजन की एक बड़ी उपलब्धि यही है कि यहां कहने और सुनने वाले विविध रंगों से सराबोर होते हैं।
इस अवसर पर मीना पांडेय ने 'आराम कुर्सी', मंजू मन ने 'ड्रापर', विनय विक्रम सिंह ने 'बुधनी की दिहाड़ी' व शिवराज सिंह ने 'सफेद आकृति' कहानी का पाठ किया। संयोजक व सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार सुभाष चंदर ने कहा कि कई रचनाकार देखे हुए यथार्थ को सौ फीसदी उसी तरह परोस देते हैं जैसे देखते हैं। लेखकों को सलाह देते हुए उन्होंने कहा कि यथार्थ उतना ही परोसा जाना चाहिए जितना पाठक की साहित्यिक भूख शांत कर सके। लेखिका व संपादक स्वाति चौधरी ने कहा कि किसी भी घटना को भावुकता से लिखना लेखन की सार्थकता नहीं है। रचनाकार को चाहिए कि वह कहानी के भीतर घुस जाए और पाठक को अपने साथ बहा कर ले जाए। सुनाई गई कहानियों पर सुरेंद्र सिंघल, आलोक यात्री, डॉ. ईश्वर सिंह तेवतिया, अवधेश श्रीवास्तव, सुभाष अखिल, डॉ. सुधीर त्यागी, प्रदीप भट्ट, राधारमण, नित्यानंद 'तुषार', प्रवीण शंकर त्रिपाठी, संदीप शर्मा, तूलिका सेठ व तेजवीर सिंह ने प्रतिक्रिया व्यक्त की। कार्यक्रम में युवा लेखक संजय दत्त शर्मा के कथा संग्रह 'कस्बा' का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन रिंकल शर्मा ने किया। संवाद में सुप्रसिद्ध लेखिका मीना झा के अलावा सत्य नारायण शर्मा, सुशील शर्मा, कुलदीप, रश्मि पाठक, डॉ. इंदु भूषण प्रसाद, डॉ. बीना शर्मा, शकील अहमद सैफ, अनिल शर्मा, वागीश शर्मा, डॉ. कविता विकास, राष्ट्रवर्धन अरोड़ा, रेनू अंशुल, डॉ. साक्षात भसीन, डॉ. सुमन गोयल, डॉ. अनिता पंडित, डी. डी. पचौरी, अंशुल अग्रवाल, रश्मि वर्मा, उत्कर्ष गर्ग, अर्चना शर्मा, अनुपम कुमार शर्मा, प्रताप सिंह, ओंकार सिंह, शैलजा सक्सेना, टेकचंद, खुश्बू, संजीव शर्मा, रवि शंकर पाण्डेय, वीरेन्द्र सिंह राठौर, अखिलेश शर्मा, रविन्द्र कुमारय बडगूजर, धर्मवीर सिंह, सौरभ कुमार व नितान्या सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।