बारादरी कर रही है साहित्य और चिंतन के संरक्षण का काम - योगेन्द्र दत्त शर्मा

गाजियाबाद। महफ़िल ए बारादरी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि व चिंतक योगेन्द्र दत्त शर्मा ने कहा कि भारतीय साहित्य व संस्कृति में संकीर्णता के लिए कोई स्थान नहीं है। उन्होंने कहा कि कवियों, शायरों की यह महफ़िल भी हमारे साहित्य और संस्कृति की पहचान बन गई है। विश्व हास्य दिवस को केंद्र में रखकर उन्होंने कहा कि मंचों पर हास्य के नाम पर जिस तरह की फूहड़ता परोसी जा रही है उससे इतर बारादरी जैसे आयोजन गंभीर चिंतन के संरक्षण का काम करते हैं।

  नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने अपने गीत की पंक्तियों 'कपिलवस्तु से श्रावस्ती तक, हाट, वीथिका से बस्ती तक, सहमा-सहमा नीति-न्याय है, जन साधारण निस्सहाय है !' और वर्तमान परिवेश के संदर्भ में 'आज इस डाल पर, कल किसी और पर, आप टिक ही न पाते किसी ठौर पर! कल किसी के रहे, आज इनके हुए, आप ही अब बताएं कि किनके हुए' पर भरपूर दाद बटोरी। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि अंतरराष्ट्रीय कवयित्री डॉ. सरिता शर्मा ने कहा कि इस कार्यक्रम में आकर वह समृद्ध हुई हैं। उन्होंने अपनी पंक्तियों 'हजार जान से कुर्बान भी है खफा-खफा है मेहरबानी है, मेरी उदास तबस्सुम का सबब वो जानता भी है और अनजान भी है' के अलावा 'मोहब्बत, प्यार, चाहत या वफ़ा कुछ भी नहीं होता, न पैसा साथ होता तो यहां कुछ भी नहीं होता, गरीबी देख कर उनकी, बड़ी तकलीफ़ होती है, जिनके पास पैसे के सिवा कुछ नहीं होता' पर भरपूर दाद बटोरी। 

  संस्था की संस्थापिका डॉ. माला कपूर 'गौहर' के अशआर 'उसे तो देख के ख़ुद आईने संवरते हैं, किसी ने देखा कहां है उसे संवरते हुए। ऐ ज़िन्दगी तुझे इसका पता नहीं शायद, किसी ने ज़िंदा रखा तुझको रोज़ मरते हुए' भी भरपूर सराहे गए। संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन ने कहा 'दरख्त पर नए पत्ते जब आने लगते हैं, तो आशियां परिंदे बनाने लगते हैं। अगर ये नींद अनायास टूट जाती है, हम अपने ख्वाब की मिट्टी उठाने लगते हैं।' डॉ. वीना मित्तल ने अपने हाईकू 'ये रिक्शेवाले, दिन भर खींचते,चंद निवाले।' 'फल न छाया, बच्चे को बोनसाई, मां ने बनाया।' 'मिट्टी है तन, फिर भी हरदम, देखें दर्पन' से माहौल बदल दिया। मासूम ग़ाज़ियाबादी की पंक्तियों 'मजे में है किसानों की कमाई बेचने वाला, फटे कंबल में सोता है रजाई बेचने वाला' पर भी खूब दाद मिली। 

तरुणा मिश्रा के शेर  'ज़िंदगी सुस्त रवानी में नहीं रह सकती,

ये बतख झील के पानी में नहीं रह सकती‌। ढूंढ़ती है मुझे तारों से परे इक दुनिया, इसलिए महफ़िल ए फ़ानी में नहीं रह सकती' भी सराहे गए। 

कार्यक्रम का शुभारंभ सोनम यादव की सरस्वती वंदना से हुआ। सुरेन्द्र सिंघल, विपिन जैन, डॉ. तारा, पुष्पा गोयल, असलम राशिद, नेहा वैद, जगदीश पंकज, सरवर हसन सरवर, संजय जैन, बी. के. शर्मा 'शैदी', वागीश शर्मा, सुरेन्द्र शर्मा, संजीव निगम, इंद्रजीत सुकुमार, सोनम यादव, तुलिका सेठ, विनय विक्रम सिंह, आशीष मित्तल, डॉ. वीना शर्मा, अनुज गुरुवंशी, राम श्याम हसीन, देवप्रिया, सिमरन, उर्वी उदल की रचनाएं भी सराही गईं। कार्यक्रम का संचालन तरुणा मिश्रा और अनिमेष शर्मा ने संयुक्त रूप से किया।

 इस अवसर पर वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट कुलदीप को लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड 'बारादरी युगश्री सम्मान' से अलंकृत किया गया।

  इस अवसर पर सुभाष चंदर, आलोक यात्री, पं. सत्यनारायण शर्मा, राधारमण, विमल कुमार, डॉ. सुमन गोयल, विश्वेंद्र गोयल, उपेंद्र गोयल, उत्कर्ष गर्ग, शिवम झा, तिलक राज अरोड़ा, अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव, वीरेन्द्र सिंह राठौर, आभा बंसल, संजीव गुप्ता, कादंबरी गोयल जैन, राकेश सेठ, टेकचंद, फरहत खान व दीपाली सिंघल सहित बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित थे।