भक्त प्रहलाद का भगवान के प्रति अटूट विश्वास का प्रतीक है होली पर्व -श्री सतपाल जी महाराज

मुरादनगर,24 मार्च। गंग नहर स्थित सतलोक आश्रम के श्री हंस इंटर कॉलेज प्रांगण में होली महोत्सव पर मानव उत्थान सेवा समिति के तत्वावधान में दो दिवसीय सत्संग समारोह में उपस्थित अपार जनसमुदाय को संबोधित करते हुए सुविख्यात समाजसेवी व आध्यात्मिक गुरु श्री सतपाल जी महाराज ने कहा कि भक्त प्रह्लाद का भगवान के प्रति अटूट विश्वास का प्रतीक है होली पर्व। 

उन्होंने कहा कि किसी भी पर्व को आप देखोगे तो उसके पीछे एक अध्यात्म का संदेश होता है जैसे प्रहलाद के अंदर भक्ति थी, भगवान के प्रति उसका अटूट विश्वास था और उसका ऐसा अटूट विश्वास था कि हिरण्यकश्यप ने कहा कि बहन होलीका तेरे पास ऐसी चादर है जो जलती नहीं है, उसको ओढ़ कर प्रहलाद को गोद में लेकर बैठ जाएगी तो प्रह्लाद जलकर खाक हो जाएगा। आसुरी मानसिक सोच का बाप होने के बाद भी उसका बेटा ज्ञानमार्गी था,भगवान का भक्त था,लेकिन हिरण्यकश्यप नही चाहता था कि वह भक्ति करे। चादर ओढ़कर होलिका अपनी गोद में प्रहलाद को लेकर बैठ जाती है, और अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है, पर भगवान ने ऐसी कृपा की, ऐसी हवा आई कि वह चादर होलिका से निकल करके प्रह्लाद पर लिपट गई, प्रह्लाद तो बच गया और होलिका जलकर खाक हो गई। अगर हम भी ज्ञानमार्गी होकर भगवान की भक्ति करेंगे और अटूट विश्वास रखेंगे तो भगवान हमारी भी रक्षा करेंगे।

श्री महाराज जी ने कहा कि प्रभु का नाम ही कलिकाल के प्रभाव से बचा सकता है। जब हमारी आत्मिक शक्ति मजबूत होगी और आत्मा में स्थित होकर इंद्रियों को वश में कर जब ध्यान व भजन सुमिरन का अभ्यास करेंगे तो धीरे-धीरे यह मन स्थिर होने लगेगा और परम प्रकाश स्वरूप परमात्मा का दर्शन होना प्रारंभ हो जाएगा। जब आत्मिक शक्ति हमारे साथ होगी तो हम अधिक शक्तिशाली हो जाएंगे। जैसे आपने देखा स्वच्छता अभियान में कूड़ा हटाओ, सफाई करो, ऐसे ही अपने अंदर का भी कूड़ा हमें बाहर निकाल कर फेंकना पड़ेगा। अंदर की स्वच्छता भी हमें करनी होगी। जब हमारा मन स्वच्छ होगा, निर्मल होने लगेगा तो धीरे-धीरे यह संसार हमें प्रभुमय दिखाई देने लगेगा। हम कभी किसी जीव या प्राणी, किसी का अनहित नहीं करेंगे। इसलिए जीवन में हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि गुरु के द्वारा बताए हुए आध्यात्म मार्ग को आत्मसात कर अपने जीवन को तो सफल बनाएंगे ही तथा दूसरों के प्रति करुणा, प्रेम, दया, क्षमा, सहिष्णुता एवम अध्यात्म के मार्ग से छोड़ना एवं जाट के मार्ग से जोड़ते हुए उसे भी आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे, यही आध्यात्म ज्ञान सिखाता है, बताता है।

कार्यक्रम से पूर्व श्री महाराज जी, माता श्री अमृता जी व अन्य विभूतियों का माल्यार्पण का स्वागत किया गया। मंच संचालन महात्मा हरिसंतोषानंद जी ने किया।