कृष्ण पर नाट्य प्रस्तुति एवं प्रो. पवन सिन्हा 'गुरुजी' के उद्बोधन से कृष्णमय रहा भारत उत्सव

गाज़ियाबाद। पावन चिंतन धारा आश्रम द्वारा आयोजित 8वें भारत उत्सव में आश्रम के ही सांस्कृतिक प्रकल्प ‘परिवर्तन’ द्वारा हिन्दी भवन, लोहिया नगर, गाजियाबाद में  ‘श्रीकृष्ण’ पर नाट्य प्रस्तुति एवं विश्विख्यात राष्ट्रवादी विचारक, राष्ट्रीय सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विषय-विशेषज्ञ एवं शिक्षाविद् प्रो. पवन सिन्हा 'गुरुजी' के उद्बोधन का आयोजन किया गया। 

श्रीकृष्ण पर आधारित नाट्यप्रस्तुति में मानव मात्र के कल्याण के मार्ग के बारे में बताया गया और यह संदेश भी दिया गया कि जो व्यक्ति ईश्वर को भावपूर्ण ढंग से विचारता है, ईश्वर तक उसकी बात अवश्य पहुँचती है। ‘तदेजति तन्नैजति तद् दूरे तद्वन्तिके। तदन्तरस्य सर्वस्य तदु सर्वस्यास्य बाह्यतः ॥’अर्थात ईश्वर गतिमान है और गतिहीन भी; वह दूर है और पास भी है; इस सबके भीतर है और इस सबके बाहर भी है इसलिए स्वयं पर विश्वास करो ईश्वर पर स्वतः ही विश्वास हो जाएगा।  नाट्य प्रस्तुति में भगवान श्री कृष्ण के न केवल बाल्यकाल को दर्शाया बल्कि 11 वर्ष के बाद उनकी शिक्षा-दीक्षा, प्रशिक्षण तथा संपूर्ण 125 वर्ष के जीवन को प्रदर्शित किया गया जिसमें उनके पराक्रमी योद्धा स्वरूप और धर्म की स्थापना के लिए अपने ही रक्त संबंधों की आहुति देने के कर्तव्यपारायण स्वरूप को भी दर्शाया गया। श्रीक़ृष्ण ने भी वैसे ही कर्म किए, तप किए और संघर्षों से भरे पथ से अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाया! परिवर्तन प्रकल्प के कलाकारों ने समाज को यह संदेश दिया कि हमें श्रीक़ृष्ण से यह सीखने की आवश्यकता है कि समस्त प्रकार के संघर्षों के उपरांत भी हँसते हुए धर्म के पथ पर कैसे चला जा सकता है। 

नाट्य प्रस्तुति में चार प्रकार के भक्तों का भी उल्लेख किया गया-  1) अर्थाथी यानी जो मात्र सांसारिक पदार्थों को पाने के लिए श्रीक़ृष्ण का स्मरण करते हैं। 2) आर्त यानी -  जो संकट के निवारण के लिए स्मरण करते हैं। 3) जिज्ञासु यानी मेरे वास्तविक रूप को जानने की इच्छा से स्मरण करने वाला और 4) ज्ञानी जो श्रीकृष्ण के वास्तविक रूप को जानकर, उन्हें भजता है। नाट्य प्रस्तुति में एक महत्वपूर्ण जीवन सूत्र भी दिया गया - उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्‌।/ आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥ यानी मनुष्य स्वयं अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु भी। इस प्रकार विवेक और तर्क बुद्धि से उचित निर्णय लेते हुए मानव अपना कल्याण स्वयं  करता है। श्रीक़ृष्ण के संपूर्ण जीवन के प्रसंगों का उल्लेख करते हुए आत्मा, श्रेष्ठ कर्म और सृष्टि के संरक्षण का संदेश दिया गया। युवाओं और मानव मात्र की प्रेरणा योगेश्वर कृष्ण को जानना आवश्यक है।

यह संज्ञान में है कि विगत एक दशक से भी अधिक वर्षों से पावन चिंतन धारा आश्रम स्वप्नदृष्टा एवं आश्रम के संस्थापक परमपूज्य प्रो. पवन सिन्हा 'गुरुजी' के मार्गदर्शन में न केवल सनातन धर्म के वैज्ञानिक स्वरूप को आधार बना भारतीय संस्कृति और सभ्यता के उन्नयन के लिए कार्य कर रहा है बल्कि ऋषिकुलशाला के माध्यम से समाज के निर्धन और हाशिये पर रहने वाले वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए भी प्रतिबद्ध है। उच्च कोटि की शिक्षा और संस्कार बच्चों को मिल सकें, वे विवेकशील और मानवीय संवेदनाओं से परिपूरित व्यक्तित्व बन सकें एवं उन्हें शिक्षा का अधिकार मिल सके – इसके लिए वर्षों से ठोस कार्य करने वाले परमपूज्य प्रो. पवन सिन्हा 'गुरुजी' को वर्ष 2013-14 के लिए ‘राष्ट्रीय महर्षि वेदव्यास सम्मान’ से अलंकृत किया गया था। ‘राष्ट्र प्रथम’और ‘राष्ट्र देवो भव’ के प्रति आस्थावान और कर्मबद्ध, भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के पुरोधा परमपूज्य प्रो. पवन सिन्हा 'गुरुजी' दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं और विश्वप्रसिद्ध संत भी हैं।

 


‘श्रीकृष्ण एक योद्धा हैं और रुक्मणी जी के जीवन साथी हैं। श्रीकृष्ण को समझने के लिए हमें अपनी बुद्धि को विशाल करना होग। समाज में व्याप्त इस भ्रांति का भी खंडन करना होगा कि ज्ञान और भक्ति दो अलग धाराएँ हैं। वस्तुत: ज्ञान-पथ पर प्रश्न और जिज्ञासाएँ होती हैं और श्रीकृष्ण को जिज्ञासु भक्त पसंद हैं। श्रीकृष्ण का शरीर सौष्ठव इतना शक्तिशाली है कि एक मुट्ठी प्रहार में वे असुर कंस का वध कर देते हैं।’ श्रीकृष्ण के विशाल व्यक्तित्व एवं गुणों की चर्चा करते हुए अपने उद्बोधन में परमपूज्य प्रो. पवन सिन्हा ‘गुरुजी’ ने यह भी बताया कि राज्य कला में निपुण श्रीकृष्ण शास्त्रों, वेद-वेदांतों, ब्रह्मांडों के रहस्यों के ज्ञाता हैं। वे बहुत विद्वान विद्यार्थी, तपस्वी, तेजस्वी और मानवहित का, धर्म का, राष्ट्र का कार्य करने वाले महान इंसान हैं।  श्रीकृष्ण की भक्ति कैसे करें? इस संदर्भ में प्रो. पवन सिन्हा ‘गुरुजी’ स्पष्ट करते हैं कि श्रीकृष्ण या किसी भी भक्ति बहुत सरल होती है। जीवन में सरलता, सहजता, अनुशासन, भगवान के दिए दायित्वों का निर्वहन, पशु-पक्षियों, सम्पूर्ण सृष्टि का संरक्षण-संवर्धन और श्रीकृष्ण के नाम का जप, प्रतिदिन सेवा कार्य करें। सृष्टि की सेवा भगवान की प्रथम सेवा है। देश के युवाओं को तन से बलिष्ठ, मन से दुरुस्त यानी मन मस्तिष्क  को एकाग्रचित्त होगा और मानवीय संवेदनाओं को आत्मसात करना होगा। हमें युवाओं में ई क्यू, आई क्यू, एस क्यू  का विकास करना ज़रूरी है। युवाओं का आह्वान करते हुए प्रो. पवन सिन्हा ‘गुरुजी’ ने  कहा कि युवाओं को श्रीकृष्ण की दिनचर्या का पालन करते हुए केवल एक प्रहर सोना चाहिए , क्योंकि अधिक सोने से आलस्य बढ़ता है। मन को बहुत संयमित करना होगा। 

भाग्य और कर्म के बारे में श्री गुरुजी श्रीकृष्ण जी का मन्तव्य स्पष्ट करते हुए कहते हैं मनुष्य के हाथ में भाग्य नहीं होता यानि किसी भी कर्म का परिणाम मनुष्य निर्धारित नहीं करता। वह मनुष्य के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। मनुष्य के अधिकार क्षेत्र में केवल कर्म है। और कर्म भी ऐसा जो कुशलतापूर्वक किया जाए - योगः कर्मसु कौशलम्‌।। ... । श्रीकृष्ण तो स्वयं एक परिणाम यानी धर्म की स्थापना के लिए युद्ध क्षेत्र में खड़े हैं। श्री कृष्ण कहते हैं कि तुम्हारे हाथ में कर्म है। तुम सर्वश्रेष्ठ प्रयत्न करो, मैं तुम्हें परिणाम दूंगा। आध्यात्मिक गुरु प्रोफेसर पवन सिंह जी ने कहा कि श्री कृष्ण का जीवन एक अनोखा दर्शन युक्त तथा राष्ट्र व समाज का हित करने वाला जीवन रहा।  वे बचपन से अपने अंत समय तक धर्म की स्थापना और समाज के सुधार के लिए कार्य करते रहे। उनका जीवन त्याग की प्रतिमूर्ति था। श्रीगुरुजी ने कहा कि सोशल मीडिया पर श्री कृष्ण के बारे में आधे-अधूरे ज्ञान को देखकर बहुत दुख होता है। श्री कृष्ण के बारे में यह कहना कि वह 16108 स्त्रियों के पति थे, तथ्य रहित बात है। श्री कृष्ण के नाम पर बहुत सारी ऐसी कथाएं चल रही हैं जिसमें उनको केवल प्रेमिका के प्रेमी के रूप में ही दिखाया जाता है, यह तथ्यहीन है। इस प्रकार की कहानी किसी के जीवन का कल्याण नहीं कर सकती अतः यह आवश्यक है कि श्री कृष्ण के जीवन के तथ्य और सत्य समाज में, विशेषकर युवा वर्ग में अपने सही और प्रामाणिक रूप में ही लोगों तक पहुंचने चाहिए।

कार्यक्रम में पावन चिंतन धारा आश्रम की सचिव पूज्य गुरुमां डॉ. कविता अस्थाना जी, विधायक अतुल गर्ग जी, गंभीर सिंह जी (ऐ डि म सिटी), कॉर्नेल टी.पी. त्यागी जी, अनिल सवारियां जी, आशु बिंदल जी, आलोक गर्ग जी, विनय जी, मधु शर्मा जी, डॉ. अनुज जी, पवन कौशिक जी, अशोक अग्रवाल जी, राज कौशिक जी की गरिमामय उपस्थिति रही। 

भारत उत्सव में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए दर्शकों ने श्रीक़ृष्ण के योगेश्वर स्वरूप और उनकी जीवन की पीड़ाओं को भी समझा। महाभारत के युद्ध क्षेत्र में श्रीक़ृष्ण ने भी तीक्ष्ण बाणों की पीड़ा सही थी और ताकी धर्म की स्थापना हो सके। हमें श्रीकृष्ण के दिखाए मार्ग का अनुगमन करते हुए, उनके संघर्षमय जीवन से दिव्य ऊर्जा लेते हुए मानव मात्र के कल्याण के लिए निष्काम कर्म करना होगा। श्रेष्ठ कर्म ही मानव जीवन का आधार है।