वॉक-ए-दिल्ली’ का आकर्षण रहा हुमायूँ का मकबरा

 रोशनी जिनसे हुई दुनिया में, उनकी क़ब्र पर 

आज इतना भी नहीं; जाकर कोई रख दे चिराग…..हाफ़िज़।

जी हाँ, ऐसा ही कुछ मंजर पेश आया आज ‘वॉक-ए-दिल्ली’ के दौरान।इतिहास को साहित्य के साथ जोड़कर की जा रही इस क़वायद में एक साथ बहुत कुछ शामिल रहता है।आज की वॉक का विरासत स्थल हुमायूँ का मक़बरा रहा।वॉक के संचालक डॉ आलोक पुराणिक व मनु कौशल ने हुमायूँ के मक़बरे के इतिहास पर रोशनी डालते हुए अनेक रोचक तथ्यों से सहयात्रियों का परिचय कराया।डॉ पुराणिक ने बताया कि यह सिर्फ़ एक मक़बरा नहीं है, बल्कि पूरी यात्रा है मुग़लिया सल्तनत की।उन्होंने बताया कि किस तरह वर्ष 1658 में चौथे मुग़ल शहंशाह शाहजहाँ के शहज़ादों दारा शिकोह व औरंगजेब के बीच तख़्त के लिए हुए युद्ध में कट्टरवादी सोच रखने वाले औरंगजेब ने उदारवादी दारा शिकोह को परास्त कर सल्तनत पर क़ब्ज़ा कर लिया था।उसके बाद आधी सदी तक औरंगजेब ने हिंदुस्तान पर शासन करते हुए बहुत कुछ बदल दिया था।डॉ पुराणिक ने ख़ासतौर पर इस बात का ज़िक्र किया कि अगर उस युद्ध में दारा शिकोह जीत जाते तो आज हिंदुस्तान का इतिहास एकदम अलग होता।लेकिन वक्त को जो मंज़ूर था वह हुआ।1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुग़ल सल्तनत को नाकाबिल, निकम्मे व अय्याश वारिसों ने अंततः बरबाद कर दिया। 

     हुमायूँ के मक़बरे में न सिर्फ़ हुमायूँ की कब्र मौजूद है बल्कि 150 मुग़लों की कब्र भी यहाँ मौजूद हैं।दारा शिकोह की कब्र भी इनमें से एक है लेकिन उसकी शिनाख्त करना संभव नहीं है।

   दास्तानगोई की एक नई शैली ईजाद करते हुए मनु कौशल ने बताया कि-हुमायूँ के मक़बरे से साहित्य का भी बहुत गहरा रिश्ता रहा है।मीर तकी मीर के समकालीन सौदा नाम के शायर के कई शेर उन्होंने सुनाए।उन्होंने शाहजहाँ का किरदार निभाते हुए मुग़लिया ख़ानदान के अर्श से फ़र्श तक पहुँचने की दास्तान को बेहद रोचक अंदाज में पेश किया।

    हुमायूँ के मक़बरे के अलावा वहाँ मौजूद इसा खान का मक़बरा, अरब की सराय, नाई का मक़बरा व मस्जिद आदि स्मारकों का भी मुआयना किया गया।इस तरह वॉक का सभी सहयात्रियों ने खूब आनंद लिया।दिल्ली के यात्रियों के अलावा ग़ाज़ियाबाद से कवि-कथाकार प्रवीण कुमार भी इस अनूठी सैर में शामिल रहे।ग़ाज़ियाबाद में भी इस तरह की वॉक किए जाने पर विचार किया जा रहा है।