साहित्य की दुनिया पर अमिट छाप छोड़ गए से. रा. यात्री

      वरिष्ठ संवाददाता 

  गाजियाबाद। वरिष्ठ साहित्यकार से. रा. यात्री आज हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन वे साहित्य की दुनिया पर कभी ना मिटने वाली अमिट छाप छोड़़ गए हैं। उनके द्वारा लिखी गई लगभग 3 सौ से अधिक कहानियां, 32 से अधिक उपन्यास, व्यंग्य और साक्षात्कार साहित्य की दुनिया को हमेशा रोशन करते रहेंगे। श्री  से रा यात्री ने शुक्रवार सुबह कवि नगर स्थित अपने निवास पर अंतिम सांस ली। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार "विगत कई वर्षो से वह आयु संबंधी व्याधियों से ग्रस्त थे। उनका अंतिम संस्कार गणमान्य नागरिकों, चिकित्सकों, साहित्यकारों, राजनीतिज्ञों, शिक्षाविदों व पत्रकारों की उपस्थिति में हिंडन मोक्षस्थली पर संपन्न हुआ। 

  से. रा. यात्री का जन्म 10 जुलाई 1932 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जनपद के गांव जड़ौदा में हुआ था। हिंदी भाषा में एम. ए.  करने के पश्चात उन्होंने राजनीति शास्त्र से भी स्नातक किया। उसके बाद से साहित्य की दुनिया से जुड़ गए। साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग, ज्ञानोदय, कादम्बिनी, सारिका, साहित्य अमृत, साहित्य भारती, बहुवचन, नई कहानियां, कहानी, पहल, श्रीवर्षा, शुक्रवार, नई दुनिया, वागर्थ, रविवार जैसी देश की तमाम पत्र पत्रिकाओं में उन्होंने विगत 50 वर्षों में अपनी लेखनी से अमूल्य योगदान दिया। देश के दो दर्जन से अधिक शोधार्थियों द्वारा  उनके लेखन पर शोध किया गया। देश के कई विश्व विद्यालयों के पाठ्यक्रम में भी उनकी कहानियां शामिल रहीं। उनकी कई कृतियां विभिन्न संस्थानों व मंचों से पुरस्कृत भी हुई। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार के विशिष्ट पुरस्कार साहित्य भूषण व महात्मा गांधी साहित्य सम्मान आदि से भी सम्मानित किया गया। उनकी कहानी ' दूत' पर दूरदर्शन की ओर से फिल्म का निर्माण किया गया था। वह महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में राइटर इन रेजिडेंट के रूप में भी कार्यरत रहे। दो दशकों से अधिक समय तक उन्होंने साहित्यिक पत्रिका ' वर्तमान साहित्य' का संपादन भी किया। उनकी प्रमुख कृतियों में उपन्यास दराजों में बंद दस्तावेज, लौटते हुए, चांदनी के आर-पार, बीच की दरार, अंजान राहों का सफ़र, कईं अंधेरों के पार, बनते बिगड़ते रिश्ते, चादर के बाहर, प्यासी नदी, भटकता मेघ, आकाशचारी, आत्मदाह, बावजूद, अंतहीन, एक छत के अजनबी, प्रथम परिचय, दिशा हारा, अंतहीन, प्रथम परिचय, जली रस्सी, टूटते दायरे, युद्ध अविराम, अपरिचित शेष, बेदखल अतीत, आखिरी पड़ाव, सुबह की तलाश, घर न घाट, एक ज़िन्दगी और, अनदेखे पुल, बैरंग खत, टापू पर अकेले, मायामृग, कलंदर व जिप्सी स्कॉलर उनके प्रमुख उपन्यास हैं। अपने पीछे वह अपने दो पुत्र व एक पुत्री सहित भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। श्री से. रा. यात्री का जाना साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति है।