जिस नई संसद में नारी शक्ति वंदन अधिनियम सर्वसम्मति से पारित हुआ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतिहास रचने की बात करते हैं, वहीं उन्हीं की पार्टी के सांसद असंसदीय, अमानवीय और आमर्यादित आचरण कर यह बताने से नहीं चूकते कि ‘हम’ नहीं सुधरेंगे।
दिल्ली से भाजपा के सांसद रमेश विधुड़ी का जो वीडियो वायरल हो रहा है, उसे सुनकर सिर शर्म से झुक जाता है। वैसे ‘माननीयों’ के अमानवीय कृत्य का यह कोई नया मामला नहीं है। इससे पहले भी सत्ता और विपक्ष के लोग इस देश को शर्मसार कर चुके हैं। अभी दक्षिण से उठा विवाद थमा भी नहीं था कि अब 21 सितंबर को नई संसद में बिधुड़ी द्वारा एक अन्य सांसद के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया गया, वह आग में घी का काम करता है। इसे किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता। यह भारतीय लोकतंत्र के मंदिर को शर्मसार करने की घटना है।
ताजा वीडियो देखकर हैरानी तब और बढ़ जाती है जब बिधूड़ी के आसपास बैठे कुछ अन्य सांसद उनके अपशब्दों को सुनकर हंसते-मुस्कुराते और आनंदित होते रहे। ये कैसे सांसद हैं? क्या इन्हें असंसदीय भाषा इस्तेमाल करने की छूट है? क्या ये कोई भी अमानवीय कृत्य कर सकते हैं? मुल्क के रहबरों, सत्ता का इतना अहंकार ठीक नहीं! आपने अमानवीय, आमर्यादित और असभ्यता का जो परिचय दिया है, उससे आप ही नहीं जलील होंगे बल्कि आपकी पार्टी और सरकार भी शर्मसार हुई है।
हम बात करते हैं सनातन की, हम बात करते हैं विश्व गुरु बनने की और हम उपदेश देते हैं मर्यादित आचरण में रहने की। लेकिन जब खुद पर इन सब नियमों का पालन करने की बात आती है तो भूल जाते हैं कि हमारी भी एक सीमा है और उस सीमा का उल्लंघन करना ठीक नहीं होगा। बात उठी है तो दूर तक जाएगी। तर्क-कुतर्क पेश किए जाएंगे। डिवेट में कुछ लोग ज्ञान बांटेंगे, लेकिन कोई यह साफ और सटीक तरीके से नहीं कह सकता कि जिस भाषा का प्रयोग किया गया, वह ‘भाषा’ नहीं कहीं जा सकती। इससे सामाजिक कटुता और बढ़ेगी। वैमनस्य फैलेगा। ऐसी असंसदीय, अमानवीय और अमार्यादित भाषा-शैली किसी भी सूरत में मान्य नहीं हो सकती। लोग भड़क सकते हैं। समाज का भाईचारा खतरे में पड़ सकता है, जिसके जिम्मेदार बिधुड़ी और उनके जैसे लोग होंगे। इससे पहले सभापति महोदय को इस मामले का संज्ञान लेकर ऐसी कार्यवाही करनी चाहिए जो एक नजीर बने और भविष्य में फिर किसी ‘माननीय’ के बोल न बिगड़ें।
लेकिन कार्यवाही नहीं की गई तो धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक तौर पर जो नुकसान होगा, उसका खामियाजा इस देश को ही भुगतना पड़ेगा। खासकर वे गरीब पीसे जाएंगे जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं होता। माननीय सभापति महोदय यह अच्छी बात नहीं है। ऐसे दंभी और अहंकारी लोगों को नेता नहीं माना जा सकता। इससे सत्ता के गलियारे में बैठे अन्य लोगों को भी गलत करने का बढ़ावा मिलेगा। उनका मनोबल ऊंचा होगा। सवाल यह भी है कि जनता ने आपको अपना प्रतिनिधि चुनकर एक मिसाल कायम करने के लिए संसद में भेजा है, फिर लोकतंत्र के उस मंदिर में आपको इस तरह की घटिया भाषा-शैली अपनाने की किसने इजाजत दे दी? सोचिए, जिस नई संसद में अभी एक दिन पहले नारी शक्ति वंदन अधिनियम सर्वसम्मति से पारित हुआ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इतिहास रचने की बात करते हैं, वहीं उन्हीं के पार्टी के सांसद अमानवीय, आमर्यादित और असभ्यता का आचरण कर के यह बताने से नहीं चूकते कि ‘हम’ नहीं सुधरेंगे। यह अच्छी बात नहीं है।
*(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)*