व्यंग्यकार डॉ आलोक पुराणिक एवं रंगकर्मी मनु कौशल जी के सौजन्य से ‘वॉक-ए-दिल्ली’

 गाज़ियाबाद। चर्चित व्यंग्यकार डॉ आलोक पुराणिक एवं रंगकर्मी मनु कौशल जी के सौजन्य से ‘वॉक-ए-दिल्ली’ के दूसरे अध्याय में शिरकत करने का अवसर मिला।तय कार्यक्रम के अनुसार सुबह 8 बजे सभी मित्र लाल क़िले के दिल्ली गेट पर एकत्रित हुए।संक्षिप्त परिचय के बाद क़ाफ़िला लाहौरी गेट की तरफ़ बढ़ने लगा।क़िले के अंदर प्रवेश करने से पहले मनु कौशल ने 1857 की क्रांति के समय आख़िरी मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र व लाल क़िले की भूमिका पर प्रकाश डाला।तत्पश्चात् हम सभी लोग छत्ता बाज़ार होते हुए नौबत खाने को पार करते हुए दीवान-ए-आम तक पहुँच गए।यहाँ आलोक जी ने मुग़ल सल्तनत के पूरे इतिहास का ब्यौरा प्रस्तुत करते हुए कई नए तथ्यों से परिचित कराया।

उसके बाद क़ाफ़िला दीवान-ए-ख़ास की ओर बढ़ चला।यहाँ आलोक जी, मनु जी व इरा पुराणिक ने लाल क़िले से जुड़े मक़बूल शायरों मोमिन, ज़ौक़ व ग़ालिब से जुड़े दिलचस्प क़िस्से सुनाए।साथ ही उनकी कुछ चुनिंदा ग़ज़लों का भी पाठ किया गया।


दीवान-ए-आम से आगे बढ़ते हुए हम लोग शाही हमाम व मोती मस्जिद का मुआयना करते हुए सावन-भादौ मंडपों के बीच स्थित चबूतरे पर बैठ गए।वहाँ आलोक जी व मनु जी ने अन्य शोधपरक तथ्य साझा करते हुए आज की सैर के समापन की घोषणा की।इस अवसर पर मैंने अपनी एक कविता ‘खंडहर’ का पाठ किया जिसे सभी मित्रों ने खूब सराहा।अगले अध्याय पर नए स्मारक पर फिर से जुटने के इरादे के साथ क़ाफ़िला बिखर गया।

शौक़त हमारे साथ बड़ा हादसा हुआ

हम रह गए हमारा ज़माना चला गया