डीपीएस स्कूल द्वारा आरटीई के दाखिले नही लेने पर कार्यवाई क्यो नही ? - जीपीए

गाजियाबाद। जीपीए ने निःशुल्क एवम अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार ( आरटीई ) के दाखिलों पर शिक्षाधिकारियों की लगातार उदासीनता पर सवाल उठाए है, जैसे जैसे समय बढ़ता जा रहा है आरटीई के दाखिले अधिकारियों एवम जिलाप्रशासन के लिए जी का जंजाल बनता नजर आ रहे है । गाजियाबाद का नामी स्कूल दिल्ली पब्लिक स्कूल , मेरठ रोड में अप्रैल माह में शिक्षा विभाग द्वारा आरटीई के दाखिलों के लिये जारी दो सूची के माध्य्म से 29 बच्चों का चयन हुआ था लेकिन 6 महीने बीत जाने के बाद भी स्कूल द्वारा बच्चों का दाखिला नही लिया गया। 

खाना पूर्ति के लिए जिले के स्कूलो को शिक्षा अधिजारियो एवम जिला प्रशासन द्वारा तीन बार मान्यता रद्द करने का चेतावनी नोटिस जारी किया गया ।उसके बाद भी डीपीएस स्कूल पर कोई असर नही पड़ा हद तो तब हो गई ,जब खुद नगर मजिस्ट्रेट पुलिस प्रशासन के साथ बच्चों के दाखिले कराने स्कूल गये और लगभग तीन घण्टे तक बच्चों के दाखिले कराने के लिये स्कूल प्रशासन से जद्दोजहद की हालांकि स्कूल प्रशासन ने दबाब में आकर 9 बच्चों के दाखिले फार्म भरवाकर दो दिन बाद बच्चों को पढ़ाई के लिए  स्कूल आने के लिए कहा गया लेकिन दो दिन बाद एक बार फिर स्कूल के मालिक के दबाब के आगे शिक्षा अशिकारी और प्रशासन नतमस्तक हो गए और स्कूल द्वारा बच्चों को यह कह कर लोटा दिया गया कि हमारी जिलाधिकारी से बात चल रही है एक बार फिर बच्चे मायूस होकर शिक्षा के अधिकार से वंचित हो गए हालांकि नगर मजिस्ट्रेट के प्रयास काबिले तारीफ थे लेकिन स्कूल के मालिक के आगे नगर मजिस्ट्रेट के प्रयास भी विफल हो गए क्योकि स्कूल का मालिक एक रसूखदार व्यक्ति है जो सत्ता में एक मजबूत पकड़ रखने के साथ ही वर्तमान सत्ताधारी पार्टी में सेंट्रल डिससिप्लिनरी कमेटी में मेंबर सेक्रेटरी भी है अब सवाल यह उठता है कि आखिर इतने रसूखदार व्यक्ति के स्कूल पर कार्यवाई करने की हिम्मत शिक्षा अधिकारी कैसे दिखाए गाजियाबाद पेरेंट्स द्वारा एसोसिएशन बाल आयोग सहित केंद्र एवम राज्य सरकार दोनों को लिखा जा चुका है जिला प्रशासन को भी अनेको बार ज्ञापन दिया जा चुका है यहां तक कि बच्चे बेसिक शिक्षा अधिकारी के यहाँ धरना भी दे चुके है लेकिन केंद्र एवम राज्य सरकार सहित शिक्षाधिकारी एवम जिला प्रशासन भी दिल्ली पब्लिक स्कूल में आरटीई के बच्चों के दाखिले पर चुप्पी साधे है अब देखना यह है कि बच्चों को शिक्षा अधिकार मिलेगा या स्कूल प्रशासन के आगे अधिकारी नतमस्तक होकर खाना पूर्ति करते रहेंगे ।