जीपीए की निःशुल्क पुस्तक मेले की ऐतिहासिक पहल से शिक्षा में बदलाव के लिए मुहिम ला रही है रंग

 गाजियाबाद। जीपीए द्वारा लगाए गये इस अनूठे पुस्तक एक्सचेंज मेले मे आज भी सुबह 9 बजे से पहले ही पुस्तकें लेने और एक्सचेंज करने के लिये अभिभावकों का तांता लगना शुरू हो गया। बुक एक्सचेंज मेले में गाजियाबाद जिले के सभी स्कूलो के अभिभावक पूरे उत्साह से भाग ले रहे हैं। कल जहाँ  सेंकड़ों अभिभावकों ने अपनी किताबों का आदान - प्रदान किया,वही आज यह आंकड़ा हजारों को पार करता नजर आ रहा है जीपीए द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में लगातार किये जा रहे प्रयासों की चारों और प्रसंशा हो रही है।

 सचिव अनिल सिंह ने कहा कई निजी स्कूल अपने नाम की कॉपियां छपवाकर या प्रेक्टिस बुक/स्पाइरल प्रश्न पुस्तिका छपवा इसकी आड़ में भी कमाई जारी रखे हुये है। इसके लिये जिला प्रशासन को तत्काल प्रभाव से रोक लगानी होगी जिससे कि जिले के लाखों अभिभावको को स्कूल की फ़ीस के अलावा इन छुपे खर्चों से निजात मिले। उपाध्यक्ष मनोज शर्मा ने बताया कि अब प्रशासन को देखना यह है जब बोर्ड से या रेगुलेटिंग बॉडी द्वारा पाठ्यक्रम या किताबों में हर वर्ष कोई बदलाव नहीं होता, तो एनसीईआरटी की सभी किताबें न लगाकर, निजी स्कूल अपनी मर्जी से पूरी तरह किताबें बदलकर निजी प्रकाशकों की महँगी किताबें विद्यार्थियों पर क्यों थोपते हैं? जीपीए प्रवक्ता विनय कक्कड़ ने बताया कि इस पुस्तक एक्सचेंज मेले के माध्य्म से जिले के विभिन्न स्कूलों में पढ़ रहे हजारो अभिभावको के बच्चों को लाभ मिला है।

 इस वर्ष गाज़ियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन का लक्ष्य जिले के एक लाख अभिभावकों तक पहुँचना और उन्हें लाभान्वित व जागरूक करना है। इसका प्रत्यक्ष लाभ विद्यार्थियों , अभिभावको को मिलेगा, साथ ही हमारी आने वाली पीढ़ियों को इसका बड़ा लाभ मिलेगा। कागज, प्रिंटिंग आदि को बचा कर पयावरण संरक्षण के रूप में मिलने वाले लाभ की कल्पना शायद शिक्षा के बाजारीकरण करने वालों की सोच से दूर है।  मीडिया प्रभारी विवेक जी का कहना है कि जीपीए  की अध्यक्ष सीमा त्यागी ने इस मुहिम को राष्ट्रव्यापी करने का आवाहन किया था जो कि कुछ संगठनों ने हमसे पिछले कुछ वर्षों में जुड़ कर अब अपने स्तर पर भी शुरू कर दिया है।  सीमा त्यागी ने अन्य जिलों एवं राज्यों के पेरेंट्स एसोसिएशन, अभिभावक संघ, पालक संघ, समाजिक संगठनों से निवेदन किया है कि वह सभी अपने अपने क्षेत्र में अपने स्तर पर इस मुहिम को आगे बढ़ाएं और इस सार्थक पहल को देशव्यापी भी करें और हर वर्ष करें। इससे विद्यार्थियों एवं पर्यावरण को तो लाभ होगा ही, साथ ही शिक्षा का बाजारीकरण रुकेगा और शिक्षा माफियाओं को कोई दूसरा कारोबार करने की सोचना होगा।