बजट में शिक्षा क्षेत्र की अनदेखी से अभिभावक हुये निराश - सीमा त्यागी

आया बजट सलोना , देश के  अभिभावक बने खिलौना

देश के वित्त मंत्री सीतारमण जी द्वारा कल देश का 93वा, बजट पेश किया गया जिसमें देश के अभिभावकों को उम्मीद थी कि कोरोना जैसी वैश्विक महामारी की चुनौतियों से निपटने को ध्यान में रखते हुये इस बार शिक्षा का बजट दुगना किया जायेगा सरकार द्वारा बजट में मामूली आवंटन तो बढ़ाया गया लेकिन अपने ही द्वारा बनाये मानकों से काफी पीछे छूटता नजर आया 140 करोड़ की आबादी वाले देश मे एक "डिजिटल यूनिवर्सिटी" खोलने की बात की गई है साथ ही "वन क्लास वन टीवी चैनल" कार्यक्रम को 12 टीवी चैनलों से बढ़ाकर 200 टीवी चैनलों तक पहुचाने की बात की गई है जो घोषणा शिक्षा क्षेत्र के बजट को आशा से निराशा की तरफ ले जाता है. गाजियाबाद पेरेंट्स एसोसिएशन, की अध्य्क्ष सीमा त्यागी ने बताया की शिक्षा क्षेत्र का बजट खुद सरकार द्वारा बनाये गए तय मानकों से काफी पीछे छूटता दिखाई देता है इस साल शिक्षा पर 104278 करोड़ रुपए ख़र्च करने का ऐलान कर सरकार द्वारा बजट पेश किया गया है जो पिछले साल 2021/22 के बजट 93224 करोड़ से कुछ अधिक है जबकि 2020/21 का शिक्षा बजट 99311.52 करोड़ था जो दिखाता है कि 2021/22 के बजट में लगभग 6000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की कटौती की गई थी अगर पिछले तीन वर्ष की तुलना करें तो इस बार बजट में बहुत मामूली वृद्धि की गई है जो ऊँट के मुँह में जीरा के समान है औऱ गौर करने वाली बात यह है की यह वृद्धि कुल जीडीपी का एक फ़ीसदी से भी कम है इस प्रकार के शिक्षा बजट को देखकर हैरानी होती है। दो वर्ष पूर्व जब देश की सरकार ने महत्वाकांक्षी नई शिक्षा नीति जारी की थी तो उसमें शिक्षा पर जीडीपी का 6 फ़ीसदी ख़र्च करने का लक्ष्य बनाया था लेकिन हम सभी अनुभव कर रहे है सरकार लगातार दूसरे वर्ष खुद अपने द्वारा तय लक्ष्य से काफी पीछे छूटती नजर आती है जो युवा भारत को शिक्षित करने के सपनों को उड़ान देने में नाकाफी नजर आता है। पिछले वर्ष का आवंटित शिक्षा बजट भी सरकार द्वारा पूरी तरह से खर्च नही किया गया जो सरकार की शिक्षा में दूरदर्शिता को दिखाता है जबकि हम सभी जानते है कि शिक्षा से ही देश की जड़े मजबूत होती है शिक्षा बजट में जहां कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के प्रभाव से निपटने के लिए कोई विशेष बजट आवंटित नही किया गया है वही "बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ" का नारा देनी वाली सरकार ने पिछले दो वर्ष में आर्थिक तंगी और संसाधनों के अभाव  के कारण पढ़ाई छोड़ने वाली बेटियों और देश के लगभग 40% छात्र / छात्राओं के शिक्षा से वंचित रहने पर बजट में कोई चिंता नजर नही आती है , देश के सरकारी स्कूलों को सुधारने, देश मे नये सैनिक स्कूल , केंद्रीय विद्यालय एवं नवोदय विद्यालय खोलने के लिए भी बजट में दूरदर्शिता का अभाव साफ़ दिखाई देता है साथ ही देश में ऐसे अनेको छोटे स्कूल है जो आर्थिक तंगी से जूझने के कारण आज बंद होने के कागार पर खड़े है या बंद हो गये है इनको राहत नही देने से भी निराशा ही हाथ लगी है साथ ही पिछले दो वर्ष से भी ज्यादा समय से बंद देश के स्कूलों में बच्चों को "ट्रांसपोर्ट" की सुविधा मुहैया कराने वाले "बस ऑपरेटर" जो गंभीर आर्थिक तंगी से जूझ रहे है और इतने लंबे समय से इनकी बसें बंद खड़ी है उनको भी इस बजट से कोई राहत मिलती नजर नही आती है कुल मिलाकर कहे तो बजट कॉर्पोरेट घरानों एवं पूंजिपतियों के लिये फ़ायदेमंद एवं आम मध्यमवर्ग जनता एवं अभिभावकों के लिये निराशाजनक रहा।