देश मे प्रत्येक बच्चे को सस्ती और सुलभ शिक्षा का सपना साकार हो - सीमा त्यागी अध्य्क्ष (GPA )

आप देख रहे है की इस वैश्विक महामारी के कारण पिछले 16 महीनो से देश के स्कूल बंद है अभिभावक लॉक डाउन समय की फीस माफी   की मांग और स्कूल ना खुलने तक ऑन लाइन क्लास के अनुसार फीस निर्धारण की मांग केंद्र सरकार और राज्यो की सरकार  से कर रहे है लेकिन सरकार अभिभावको की आवाज को अनसुना कर चुप्पी साधे है हद तो तब हो गई जब प्रदेश के शिक्षाविद शिक्षा मंत्री जी ने कहा कि सक्षम अभिभावक फीस जमा करे पर अपने बयान में एक बार भी नही कहा कि सक्षम स्कूल भी फीस माफ करे।  प्रदेश के शिक्षा मंत्री निजी स्कूलों के पक्ष में बयान दे रहे है और पेरेंट्स के लिए गोल मोल आदेश देकर निजी स्कूलों को सीधा सरक्षण  दे रहे।  साथ ही जिला प्रशासन के हाथ सरकार के आदेश के साथ बंधे है जिला प्रशासन भी अपने विवेक से कोई निर्णय नही लेना चाहता है।  शायद जनता द्वारा दी गई कलम की शक्ति और निर्णय लेने की क्षमता को इन्होंने सरकार के समक्ष गिरवी रख दिया है।  अभिभावको ने सरकार तक अपनी आवाज पहुचाने के लिए कोई कसर नही छोड़ी।   क्योकि आप सभी जानते है सत्ता में बैठे हुये नीतिनिर्धारकों के ही अधिकतर निजी स्कूल है या आप कह सकते है।  प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरक्षण प्राप्त है।  इसलिये इस मुद्दे पर सभी एक मंच पर साथ खड़े होकर चुप्पी साध लेते है।  जिसका प्रमाण आप और हम देख रहे है।  साथियो अब प्रशन यह उठता है कि आखिर अभिभावक करे तो या करे इसका जबाब है।  जब शासन ,सत्ता और न्याय तंत्र एक साथ मिल जाये तो जनता को मतलब अभिभावको को अपने निर्णय खुद करने होंगे और न्याय के लिए खुद आवाज बुलंद करनी होगी।  

सोचो और निर्णय करो

1 .  क्या देश अथवा प्रदेश का कोई जिम्मेदार नीतिनिर्धारक , शिक्षाधिकारी , शासन , प्रशासन स्पष्ट कर सकता है कि पिछले 16 महीने से स्कूल बंद है तो फिर किस आधार पर अभिभावक स्कूलो की फीस दे क्या अभिभावको ने सरकार अथवा निजी स्कूलों से कोई कर्जा अथवा लोन लिया है जिसकी बिना सर्विस लिये क़िस्त देनी ही होगी क्या बिना किसी सुविधा के कोई शुल्क दिया जा सकता है क्या अभिभावको ने सब कुछ सरकार पर ही छोड़ दिया क्या आपने सोचा कि आपने अपने बच्चों को एड्मिसन सरकार से पूछ कर कराया था तो इसका जबाब है नही आप अपना पेट काटकर कड़ी मेहनत कर अपने बच्चों की फीस दे रहे है क्या हमने अपने बच्चों को अपनी कमजोरी समझ लिया है जिसका फायदा सरकार से लेकर निजी स्कूल तक उठा रहे है।  क्या आपने सोचा हमारे बच्चे हमारी कमजोरी नही हमारी ताकत है।  जिस दिन आपको ये अहसास हो गया उस दिन सरकार और निजी स्कूल आपकी आवाज भी सुनेंगे और आपके सामने सौ बार नतमस्तक भी होंगे।  क्या आपकी आवाज पर जब सरकार और निजी स्कूल चुप्पी साधे है तो आप स्वयं सही और गलत का निर्णय नही कर सकते तो फिर ये बच्चे जो आने वाले कल का उज्ज्वल भविष्य है गलत के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत कर पाएंगे कभी नही जिस दिन आपने सही और गलत का आंकलन कर निर्णय लेने की सोच पैदा कर लगे उस दिन आपको कोई नही झुका सकता है तो आओ साथियो मिकलर निर्णय ले और गलत के खिलाफ आवाज उठाये। 

2 - क्या आपने सोचा कि जिस देश मे 56 ℅ बच्चों के पास ऑन लाइन क्लास लेने के लिए संसाधन मौजूद नही है जो सरकार और निजी स्कूल बच्चों को मोबाइल / लेपटॉप और टीवी स्क्रीन से दूर रहने के लिए संदेश देते थे आज उन्ही ने हमारे बच्चों के स्वास्थ्य को ताक पर रखकर ऑन लाइन क्लास से पढ़ाई करने के लिए झोंक दिया गया।  वो भी अभिभावको की बिना परमिशन के क्या वाकई इनका उद्देश्य समान शिक्षा के अधिकार का पालन करते हुये प्रत्येक  बच्चे को इस महामारी में शिक्षा देने था या निजी स्कूलों को फीस इकट्ठा करने का मौका देना आप सोचे और निर्णय ले ।

3 .  क्या हमारी ऑन लाइन क्लास के अनुसार फीस निर्धारण की मांग गलत है।  क्या सरकार को समझ नही आता कि जितनी सर्विस ली जाती है।  उतने ही पैसे दिए जाते है सत्ता में बैठे लोग सब जानते हुये भी चुप्पी साधे है।  क्योंकि उनको पता है जब इलेक्शन में वोट देने का समय  होगा तो जनता । 

जात -पात , हिन्दू - मुसलमान और धर्म के आधार पर ही बोट करती है  शिक्षा , बेरोजगारी और स्वास्थ्य जैसे अहम मुद्दे पर नही।  उन्हें पता है ये हमारी रैलियों में तो आ सकते पर एक साथ खड़े होकर गलत के खिलाफ आवाज नही उठा सकते है।  क्या ये सही समय नही है कि हम अपनी सोच बदलकर अपनी प्रथमिकता में शिक्षा , स्वास्थ्य ,और बेरोजगारी को जोड़े और आने वाली युवा पीढ़ी के लिए सुखद भविष्य के निर्माण की नींव रखे या फिर इसी तरह लूटते रहे क्या आपको नही लगता कि जिस दिन आपने अपनी बंदूक अपने कंधे पर चलानी शरू कर दी अर्थात सही - गलत का निर्णय का आकलन स्वयं करना शरू कर दिया।  उस दिन निजी स्कूल और सरकार आपके सामने घुटने टेकने को मजबूर होंगे और आपकी आवाज को सुना जाएगा ना कि चुप्पी साधी जाएगी तो उठो और जागो और निर्णय करो। 

4- क्या सरकार को पता नही की निजी स्कूलों का रजिस्ट्रेशन सोसाइटी एक्ट के तहत होता है जिसके माध्य्म से शिक्षा देने को समाज सेवा बताया गया है।  जबकि सरकार की आंखों के सामने ही निजी स्कूलों ने शिक्षा देने के कार्य को व्यवसाय बना दिया और एक स्कूल से अनेको स्कूल खोलकर करोडो की संपति इकट्ठा कर ली सरकार में बैठे लोगों को सब कुछ पता है पर वो बोलते नही क्योकि अधिकतर निजी स्कूल इन्ही लोगों के है या सरक्षण प्राप्त है।  जिसका प्रमाण हमने देखा जब प्रदेश के शिक्षा मंत्री जी ने बयान दिया कि हम निजी स्कूलों का अहित नही होने देंगे और कहा कि सक्षम अभिभावक फीस जमा करे प्रदेश के शिक्षा मंत्री जी को अभिभावक फीस जमा करने के लिए सक्षम दिखाई देते है।  लेकिन प्रदेश के निजी स्कूल फीस माफ करने के लिए सक्षम दिखाई नही देते और इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है।  क्या इसके बाद भी आप अपने निर्णय स्वयं नही करेंगे और गलत के खिलाफ आवाज नही उठाएंगे। 

5. सरकार कहती है कि निजी स्कूलों को टीचर्स की सैलरी देनी है।  इसलिये अभिभावको को पूरी फीस देनी चाहिए।  पर सरकार ये नही देखना चाहती है कि 90 ℅ स्कूलो ने 50% टीचर्स को निकाल दिया गया है और जो है उनको आधे से भी कम सैलरी दी जा रही है।  आखिर क्यों सरकार  हिम्मत नही दिखाती है कि निजी स्कूलों की पिछले 10 साल की बैलेंस शीट जांच करे और उसके आधार पर फीस माफी का निर्णय करे और फिर भी अगर सरकार को निजी स्कूलों की इतनी ही चिंता है तो फिर क्यो सरकार आपदा राहत कोष से स्कूलो को फण्ड अलॉट करती है फिर क्यो अपनी नैतिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुये अभिभावको पर फीस जमा करने का दबाब बनाया जा रहा है।  क्या सरकार में बैठे नीति निर्धारक बता पाएंगे कि आखिर वो कौन सा फार्मूला है।  जिसके आधार पर अभिभावक पिछले 6 महीने से बंद निजी स्कूलों की फीस दे और आखिर किस आधार पर सरकार ने निर्णय कर लिया कि अभिभावक फीस देने में सक्षम है और स्कूल फीस माफ करने में असक्षम  साथियो समझो और अब खुद निर्णय करो। 

6.  क्या आपने सोचा आखिर क्या कारण है कि अपने पूरे कार्यकाल में देश के आदरणीय नेतागण एक बार भी सरकारी विद्यालयों का दौरा कर उनकी हालत जानने की जहमत नही उठाते है क्योकि किसी भी सरकार के लिए सालों से शिक्षा अहम मुद्दा रहा ही नही और यही कारण है कि हमारी आँखों के सामने ही सरकारी स्कूल बर्वादी के कगार पर पहुँच गये और आज 70 साल बाद भी सरकारी विद्यालयों में बच्चे टाट -पट्टियों पर बैठ कर शिक्षा लेने को मजबूर है क्या आपने सोचा कि पूरे प्रदेश में कितने  CBSE बोर्ड से एफिलिएटेड सरकारी स्कूल हमारे बच्चों के लिए सरकार द्वारा खोले गये जबाब होगा एक भी नही क्या आपने सोचा जब सरकारों के पास सभी योजनाओं के लिए फण्ड है तो फिर सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से बेहतर इंफ्रास्ट्रेक्चर देने के लिए फण्ड क्यो नही क्योकि हमारी आंखों के सामने ही सरकारी स्कूलों की अनदेखी कर निजी स्कूलों को सरक्षण देकर शिक्षा को व्यापार बना दिया गया और हम देखते रहे हमने कभी सरकार में बैठे नेता गण से सरकारी स्कूलों की दुर्दशा के कारण पर प्रशन पूछने की हिम्मत ही नही दिखाई और आज परिणाम हम सबके सामने है तो साथियो क्यो हम सब मिलकर आवाज नही उठाते की हमारे सरकारी स्कूलों को निजी स्कूलों से बेहतर किया जाए और प्रत्येक बच्चे तक सस्ती और सुलभ शिक्षा पहुचाने के सपने को साकार किया जाये । साथियो उठो , जगो और अपने अधिकार के लिए आवाज उठाओ। 

विशेष -- क्या आपने सोचा है कि ऐसा क्यों हो रहा है मुझे लगता है कि हम सब केवल अपने परिवार तक ही सीमित हो कर रह गए ह हमने समाज और देश के लिए सोचना सीमित कर दिया निर्णय करे क्या हम अपने 24 घंटे में से अपने देश और समाज के लिए दो घन्टे भी नही दे सकते अगर आप चाहते है कि देश मे प्रत्येक बच्चे को सस्ती और सुलभ शिक्षा का सपना साकार हो तो इसके लिये गाजियाबाद परेंटस एसोसिएशन  का साथ देना होगा तो साथियो उठो - जागो और न्याय की इस लड़ाई में क्रांतिकारी साथियो का साथ दो।