विश्व धर्म संसद के लिए आशीर्वाद मांगने दुधेश्वरनाथ मठ पहुँचे यति नरसिंहानंद सरस्वती

गाज़ियाबाद। 2021 के दिसम्बर में इस्लामिक जिहाद के वास्तविक स्वरूप और खतरों से सम्पूर्ण विश्व को सावधान करने के लिए आयोजित होने वाले विश्व धर्म संसद की सफलता हेतु आशीर्वाद माँगने यति नरसिंहानंद सरस्वती जी महाराज आज दुधेश्वरनाथ मठ गए जहाँ उन्होंने विधिवत महादेव शिव की पूजा करने के बाद जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय मंत्री व प्रवक्ता श्रीमहंत स्वामी नारायण गिरी जी को विश्व धर्म संसद के आयोजन के विषय मे विस्तार से बताया और उनसे आशीर्वाद मांगा।

स्वामी नारायण गिरी जी महाराज ने यति नरसिंहानंद सरस्वती जी की बात सुनने के बाद उन्हें आशीर्वाद के साथ ही हर तरह के सहयोग का भी आश्वासन दिया।

स्वामी नारायण गिरी जी महाराज ने कहा कि यति नरसिंहानंद सरस्वती जी की लड़ाई आज सारे हिन्दू समाज के अस्तित्व की लड़ाई है और इस लड़ाई में सम्पूर्ण संत समाज उनके साथ है और रहेगा।

उन्होंने यति जी की हत्या की घोषणा करने वालो को चेतावनी देते हुए कहा कि कोई भी यति जी को अकेला न समझ ले।यति नरसिंहानंद सरस्वती जी की हत्या करने का अर्थ सम्पूर्ण हिन्दू समाज को चुनौती है।यदि कोई यह सोचता है कि यति नरसिंहानंद सरस्वती जी की हत्या करके हिन्दुओ को डरा देगा तो यह उसकी भूल है क्योंकि यति नरसिंहानंद सरस्वती जी की हत्या के बाद हिन्दुओ का एक एक बच्चा स्वयं यति नरसिंहानंद सरस्वती बनकर इस्लाम के जिहाद से लड़ेगा।

स्वामी नारायण गिरी जी महाराज ने सम्पूर्ण हिन्दू समाज विशेष रूप से संत समाज से यति नरसिंहानंद सरस्वती जी का साथ देने का आह्वान करते हुए कहा कि ये हर समाज का धर्म और कर्तव्य है कि समाज के अस्तित्व के लिए अपने प्राण दांव पर लगाने वाले योद्धाओं का साथ दे।सनातन धर्म की रक्षा के लिये लड़ने वालों में आज यति नरसिंहानंद सरस्वती जी का नाम अग्रणीय पंक्ति में है।आज हम सब का कर्तव्य है कि हम सब उनका साथ दे ताकि सनातन धर्म की रक्षा की लड़ाई बहुत मजबूती से लड़ी जा सके।

उन्होंने यति नरसिंहानंद सरस्वती जी महाराज से कहा कि विश्व धर्म संसद के आयोजन के लिए शिवशक्ति धाम डासना को दूधेश्वरनाथ मठ एक लाख रुपये की सहायता देगा।

यति नरसिंहानंद सरस्वती जी महाराज ने स्वामी नारायण गिरी जी महाराज की चरण वंदना करके आ आभार व्यक्त किया और उनसे विश्व धर्म संसद की आयोजन समिति का संरक्षक बनने का आग्रह किया जिसे स्वामी नारायण गिरी जी महाराज ने स्वीकार किया।