मकर संक्रांति का पर्व के पुण्य काल में स्नान-दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है - महंत विजय गिरी जी महाराज

    गाज़ियाबाद। मकर संक्रांति को अलग-अलग प्रांतों में विभिन्न नामों से जाना जाता है उत्तर भारत में जहां इसे मकर  संक्रांति कहा जाता है। वहीं, इस दिन बच्चे-बुजुर्ग पूरे उत्साह के साथ अपने घर की छतों पर पतंग उड़ाते हैं और मकर संक्रांति सेलिब्रेट करते हैं। महंत विजय गिरी जी महाराज  ने बताया  की इस साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इस दिन सूर्य देव सुबह 8 बजकर 30 मिनट यानी साढ़े 8 बजे धनु से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। इसी के साथ मकर संक्रांति की शुरुआत हो जाएगी। दिन भर में  माना जाता है कि पुण्य काल में स्नान-दान करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्य भगवान उत्तरायण होते हैं। मान्यता है कि इस दिन से देवताओं के दिन शुरू हो जाते हैं। साथ ही, घरों में मांगलिक कार्य भी संपन्न होने आरंभ हो जाते हैं। मकर संक्रांति के दिन मान्यता है कि भगवान सूर्य की अराधना होती है। सूर्यदेव को जल, लाल फूल, लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, अक्षत, सुपारी और दक्षिणा अर्पित की जाती है। पूजा के उपरांत लोग अपनी इच्छा से दान-दक्षिणा करते हैं। साथ ही, इस दिन खिचड़ी का दान भी विशेष महत्व रखता है। महंत विजय गिरी जी महाराज ने  बताया कि मकर संक्रांति पर देवलोक में भी दिन का आरंभ होता है। इसलिए इसे देवायन भी कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन देवलोक के दरवाजे खुल जाते हैं। संक्रांति के दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देते हैं।