गाज़ियाबाद। परमपूजनीय संत स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो में भाषण देकर इतिहास रच दिया और भारतीय ज्ञान का परचम पूरे विश्व में लहरा दिया। इस दिन को पावन चिंतन धारा आश्रम गत कई वर्षों से ज्ञान के अभ्युदय 'ज्ञानोत्सव' के रूप में मना रहा है। आज इसी उपलक्ष्य में 129 वीं वर्षगांठ पर, हिसाली गांव गाज़ियाबाद में स्थित पावन चिंतन धारा आश्रम में 12वें ज्ञानोत्सव पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया जिसका विषय था – “स्वामी विवेकानंद एवं भारतीय सभ्यता”। इसमें मुख्य वक्ता के रूप में दिल्ली यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर संगीत रागी जी तथा विषय व्यास हेतु आश्रम के संस्थापक, प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु प्रो. पवन सिन्हा ‘गुरुजी’ उपस्थित थे। कार्यक्रम का शुभारंभ गुरुवन्दना तथा स्वामी विवेकानन्द जी के शिकागो में दिए गये भाषण की प्रस्तुति से हुई। तदुपरांत प्रो. संगीत रागी जी ने कहा कि स्वामी जी की व्यक्तित्त्व इतना महान है कि अध्यात्म को सिरे से खारिज करने वाले भी स्वामी जी को सुन कर अध्यात्म की शरण में आने को मजबूर हो जाते हैं। मेरे जीवन में जब कभी नैराश्रय का भाव आता है, जब कभी जीवन के लिय सोचता हूँ तो सबसे पहले स्वामी जी की गोद ढूंढता हूँ। राष्ट्रवाद, शिक्षा, अध्यात्म, मिशन अवेकनिंग, स्त्री दशा, विज्ञान, दरिद्र नारायण ये ऐसे विषय हैं जिसे आप स्वामी जी के जीवन मे देख कभी भी प्रेरणा पा सकते हैं। केवल शिष्य ही नही गुरु भी अपने शिष्य की खोज में घूमता है और इसका सबसे सटीक उदाहरण हैं स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी तथा विवेकानन्द जी का सम्बन्ध। रामकृष्ण परमहंस जी जानते थे कि देश और धर्म को सही दिशा स्वामी जी ही दे सकते हैं। रागी जी ने आगे बात करते हुए कहा कि अन्य धर्मों की तरह सनातन संस्कति बंधी हुई नही है अपितु अनंत है। हम अपने ईश्वर को केवल विश्वास के सहारे नहीं बल्कि आत्मसाक्षात्कार कर पा सकतें हैं। हम तलवार के बल पर नहीं, अध्यात्म के सहारे पूरे विश्व में अपनी पहचान रखते हैं। इसलिए स्वामी जी स्थूल से सूक्ष्म की बात करते हुए सगुण से निर्गुण रूप तक पहुँचने की बात करते हैं। आज के समय में आश्रम, मठों, मंदिरों की महत्ता के विषय पर बात करते हुए डॉ संगीत रागी ने कहा कि भारत के आश्रम, मंदिरों का मजाक बनाना बंद करें, ये हमारे ज्ञान, अध्यात्म और श्रद्धा के केंद्र है, जिस दिन ये नही रहेंगे भारत भारत नहीं रहेगा, भारत में भारतीयता नहीं रहेगी, इतने विरोध और द्वंदों के बाद भी भारत यदि टिका है तो यह अपनी अध्यात्मिक शक्ति के कारण ही संभव है।
तत्पश्चात विषय व्यास कर्ता परमपूज्य डॉ. पवन सिन्हा ‘गुरूजी’ ने अमेरिका पर हुए हमले की तरफ इशारा करते हुए कहा कि सारी दुनिया 9/11 को जैसे याद करती है, हम सौभाग्यशाली है कि हम 9/11 को वैसे याद नहीं करते। हम स्वामी जी के लिए इस तिथि को याद रखते हैं। आगे बात करते हुए गुरूजी ने कहा कि जब तक धर्म का वास्तविक स्वरुप लोगों तक नहीं पहुंचेगा लोग पाखंड में फंसेगे और स्वामी जी धर्म में इसी पाखंड के विरुद्ध थे। धर्म केवल रीति रिवाजों का तानाबाना नहीं अपितु अध्यात्म से बंधा हुआ है। स्वतंत्रता संग्राम के असल प्रणेता स्वामी विवेकानंद ही थे जिनसे महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक, सुभाष बोस, ऋषि अरबिंदो जैसे महान समाज सुधारक एवं क्रांतिकारी प्रेरणा पाते रहे। लोकमान्य तिलक जिस स्वराज की बात करते हैं स्वामी जी उसी स्वराज को स्वयं पर शासित इन्द्रियों का नियन्त्रण से जोड़ते हैं। महात्मा गांधी जी ने स्वामी जी के देहावसान के बाद कहा था कि अगर स्वामी जी होते तो स्वराज कब का मिल ही गया होता। एक ओर जहाँ स्वामी जी मैक्समुलर से मिले तो भारत के प्रति उसके ओपिनियन में भी बदलाव करते हैं। वहीं 1918 में ब्रिटिश सरकार के सेडीशन एक्ट में स्वामी जी को स्वतंत्रता संग्राम के लिए मुख्य जिम्मेदार माना जाता है। इससे आप उनके देश हित के कार्यों और उनके क्रांतिकारी व्यक्तित्व का आंकलन कर सकते हैं।
स्वामी जी कठोपनिषद को पढ़ते हुए कहते हैं - उठो जागो लक्ष्य को प्राप्त करो तथा श्रेष्ठ व्यक्ति के सानिध्य में ज्ञान प्राप्त करो। हमारे सिद्धांत हमारे कर्म में परिलक्षित होने चाहिए। किसी को धोखा देना भी चरित्रहीनता ही तो है। स्वामी जी ने कहा महान लक्ष्य चुनो और उस लक्ष्य प्राप्ति के लिए उस महानता तक पहुँचने का प्रयास करो। जबकि आज लोग लक्ष्य छोटे करने लगते हैं। आगे बात करते हुए गुरूजी ने कहा कि देश और धर्म के विकास में अपने संतों-सन्यासियों के योगदान को पहचानिए, स्वामी जी का कार्य मौलिक रहा उन्होंने किसी की नकल नहीं की तथा बिना दान के इतना बड़ा संगठन खड़ा किया। स्वामी जी जब अमेरिका गए लोगों ने उन्हें पत्थर मारे, उनका उपहास उड़ाया पर उन्होंने यही कहा कि मै अपने गुरु और मैया का कार्य कर रहा हूँ, वही ये कार्य करवाएंगे। उनका यही विश्वास उन्हें शिकागो में सफलता दिलाता है तथा भारत के ज्ञान को विश्व तक पहुंचाता है। श्री गुरूजी ने युवाओं को सन्देश देते हुए कहा - आँखे हमारी हैं उन्हें हम बदल नहीं सकते लेकिन उन आखों से सपना कितना बड़ा देखना है यह हम तय कर सकते हैं। इस सूत्र के साथ श्रीगुरुजी ने अपनी बात पूर्ण की।
कार्यक्रम के अंत में यंग मुव्स मिडिया की पत्रिका यंग मूव्स के पुनर्संस्करण का लांच हुआ और आदरणीय गुरुमां डॉ. कविता अस्थाना जी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम में जालंधर, मेरठ, फरीदाबाद, नॉएडा, गाज़ियाबाद, दिल्ली अनेक शहरों से लोग उपस्थित रहे तथा कार्यक्रम का सीधा प्रसारण आश्रम के फेसबुक तथा यूट्यूब चैनल पर भी किया गया जिसमें हजारों लोग लाइव जुड़े रहे।