परमात्मा के पावन नाम जाने बिना मनुष्य का जीवन निरर्थक -रामअलबेलानन्द

सीतापुर। दो दिवसीय सद्भावना संत सम्मेलन के पहले दिन अयोध्या धाम से पधारे महात्मा रामअलबेलानन्द जी ने कहा कि कण-कण में विधमान उस परमात्मा के पावन नाम को जानना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। ईश्वर के अविनाशी रूप को जाने बिना मनुष्य जीवन निरर्थक है। इसलिए आप सभी भगवान को जानकर भक्ति करें, मानकर नहीं।

गुरु पूर्णिमा के उपलक्ष्य में अखिल भारतीय धार्मिक और समाजिक संस्था मानव उत्थान सेवा समिति की शाखा श्री हंस योग साधना आश्रम, गोल पार्क, विजय लक्ष्मीनगर द्वारा आयोजित इस संत सम्मेलन के प्रेरणाश्रोत विश्व प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री सतपाल जी महाराज है। विजय लक्ष्मीनगर स्थित महाराजा अग्रसेन अतिथि भवन (नजदीक बस अड्डा) में दो दिवसीय 'सद्भावना संत सम्मेलन' के पहले दिन भक्त समुदाय को सम्बोधित करते हुए महात्मा रामअलबेलानन्द जी ने नवधा भक्ति का उदाहरण देते हुए कहा कि 'वारि मथे घृत होय, सिकता ते बरु तेल। बिन हरि भजन ना भव तरे, यह सिद्धांत अपेल।' अर्थात पानी के मथने से घी निकल सकता है, रेत को पेरने से तेल निकल सकता है जबकि दोनों असम्भव है लेकिन भगवान के भजन बिना संसार रूपी भवसागर  से कोई भी पार नहीं जा सकता है, कोई भी जन्म-मरण के चक़्कर से मुक्त नहीं हो सकता है।

मंच पर उपस्थित संस्था की जिला सीतापुर प्रभारी साध्वी दर्शनी बाई जी ने सत्संग प्रांगण में उपस्थित श्रद्धालू भक्तों को समझाते हुए कहा कि ईश्वर की असीम कृपा होती है तब संतो का सानिध्य और हरि चर्चा श्रवण करने को सुलभ होता है। ज़ब भगवान अपने करीब बुलाना चाहते है तब भक्त को सच्चे संतो के पास भेजते है। यह हमारे सभी धर्म शास्त्रों में प्रमाण है। संत मिले तो मै मिल जाऊ, संत ना मोसे न्यारे, उद्धव संत सदा अति प्यारे।

साध्वी दर्शनी बाई जी ने कहा कि हम बड़े ही भाग्यशाली है कि इस घोर कलिकाल में भी संतो का सानिध्य प्राप्त और भगवान का गुणगान भजन और सत्संग के माध्यम से प्राप्त हो रहा है। यह कोई साधारण बात नहीं है।

तीर्थनगरी नैमिष धाम से पधारी साध्वी गिरजा बाई जी ने भजनों के माध्यम से कहा कि -सत्संग है मानसरोवर सुखो की खान बंदे, सत्संग से ही मिलते है सचमुच भगवान बंदे अर्थात जो यहां पांडाल में जो आया हुआ व्यक्ति है वह परम भाग्यशाली है क्योंकि भगवान को पाने का यही एक रास्ता है। आज गंगा खुद चलके आपके द्वारा पहुंची है आप इस सत्संग रूपी गंगा में गोता लगाके मनुष्य चोला सार्थक बनाले। 

साध्वी जी ने कहा कि पहले का युग था कि भक्त भगवान की खोज में दर-दर भटकता था ऋषि-मुनियों के आश्रम में जाकर सेवा भक्ति करके करके संतो को प्रसन्न करके ज्ञान प्राप्त करता था लेकिन कलिकाल का ऐसा महत्व है कि संत समाज खुद आपके समक्ष उपस्थित होकर आपको ज्ञान और भक्ति के प्रति प्रेरित करता है। यह भगवान और संतो की असीम कृपा है।

दिल्ली से पधारे हुए प्रसिद्ध भजन गायक कलाकार अमर रंगीला की टीम ने -रे मानुष क्या ढूंढे इस जग में, सब कुछ तेरे अंदर। कोई ढूंढो रे साधो, गुरु चरणों का सहारा। गुरु जी पईयां लागू नाम, लखाय दीजो रे जैसे अनेक ज्ञान, भक्ति और वैराग्यपूर्ण मधुर भजनों द्वारा सबको लाभान्वित किया। मंच संचालन धुरन्धर चौहान ने किया।

सहयोगी संस्था मानव सेवा दल के स्वयं सेवकों, यूथ विंग के सदस्यों और समिति के कार्यकर्ताओं ने कार्यक्रम में बढ़-चढ़ के भाग लिया। आरती प्रसाद के बाद आज के कार्यक्रम को विश्राम किया गया।